यू सूरजमल जाटनी का जाया है या तो तू हरदौल को छोड़, वर्ना दिल्ली छोड़!


जब एक ब्राह्मण की बेटी हरदौल को (उसकी माँ की पुकार पर) कैद से छोड़ने हेतु, महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के बादशाह अहमदशाह को कहलवाया कि, "या तो हरदौल को छोड़, वर्ना दिल्ली छोड़!"
अहमदशाह ने उल्टा संदेशा भेजा, "सूरजमल से कहना कि जाटनी भी साथ ले आये, पंडितानी तो क्या छुड़वाएगा वो हमसे!
"इस पर लोहागढ के राजदूत वीरपाल गुर्जर वहीँ बिफर पड़े और वीरगति को प्राप्त होते-होते कह गए, "तू तो क्या जाटनी लैगो, पर तेरी नानी याद दिला जायेगो, वो पूत जाटनी को जायो है।
"इस पर सूरजमल महाराज ललकार उठे, "अरे आवें हो लोहागढ़ के जाट, और दिल्ली की हिलादो चूल और पाट!
"और जा गुड़गांव में डाल डेरा बादशाह को संदेश पहुँचाया, "बादशाह को कहो जाट सूरमे आये हैं अपनी बेटी की इज्जत बचाने को, और साथ में जाटनी (महारानी हिण्डौली) को भी लाये हैं, अब देखें वो जाटनी ले जाता है या हमारी बेटी को वापिस देने खुद घुटनों के बल आता है।"और महाराजा सूरजमल का कहर ऐसा अफ़लातून बन कर टूटा मुग़ल सेना पर कि मुग़ल कह उठे:
तीर चलें, तलवारें चलें, चलें कटारें इशारों तैं, अल्लाह मियां भी बचा नहीं सकदा, जाट भरतपुर आळे तैं।
और इस प्रकार ब्राह्मण की बेटी भी वापिस करी और एक महीने तक जाट महाराज की मेहमानवाजी भी करी।
वीरभूमि भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल अमर रहें !!
जाट वीरो आज एक ऐसी कहानी आपके बीच लिख रहा हुँ जिसके कारण लोहागढ नरेश महाराजा सूरजमल जाट अफलातुन कहलाए...
जब दिल्ली पर मुगल बादशाह अहमदशाह का राज था
बादशाह के दरबार मेँ एक पंडित रहता था
पंडित कि पत्नी रोज पंडित को खाना ले जाति थी...एक दिन पंडित कि बेटि हरजोत कौर अपने पिता को खाना लेके गई
हरजोत जब वापस घर चली गई तो बादशाह ने पंडित को पूछा तेरी बेटी है क्या ये
पंडित बोला हाँ,तो बादशाह बोला तुने अब तक ये बात हमसे छुपाई कोई बात नि
पर सुन हरजोत हमारे दिल को छू गई मै उसे अपनी बेगम बनाना चाहता हूँ
पंडित बोला हुजूर दया करो ऐसा मत सोचो आप कि बेटी है
बादशाह बोला बेटी थी पंडित पर अब कुछ अलग है
पंडित गिडगिडाने लगा और बादशाह के पैरोँ मेँ गिर गया लेकिन पत्थर दिल मेँ दया कहाँ बादशाह बोला सुन सात दिन मेँ हरजोत का डोला ले लिया जाएगा....
पंडित रात को घर पहुंचा और चिंता कि लखिरि माथे पर लेके बैठ गए तो पंडितानी और बेटी ने पूछा तो पंडित कि आँखोँ से आंसुओँ कि धार तो हरदौल बोली पिताजी जो हुआ है बताओ तो पंडित ने सारा दुखडा बेटी को रो दिया
बेटी बोली पिताजी मेँ र्धम ना बदलूंगी चाहे जान चली जाए
पंडित पंडितानी को रोते 2 रात निकल गई सुबह बादशाह के सैनिकोँ ने पंडित के घर को छावनि बना दिया और बादशाह ने आदेश दिया कि पंडित फालतु बोले तो घर मे आग लगा देना तो एक सैनिक ने बादशाह शलाह दि कि आग लगाने से फायदा नाए हरजोत को जेल मेँ डाल दिया जाए और मारपीट खा के राजी हॅ जाएगी तो बादशाह ने हरदौल को जेल मेँ डलवा दिया और यातनाए दि जाने लगी तो दूसरे दिन एक भंगी हरिजन कि औरत जो कि महल मेँ झाडु लगाने आति थी वो छुप के हरदौल से मिली
जिस वक्त कि ये घटना थी तब दिल्ली के आसपास कोई भी राजा लडने को तैयार ना था तो भाइयो उस औरत ने हरजोत को बताया कि बेटि कोइ भी तेरि सहायता ना है हिन्दुओ मे बस एक सक्श है वो लोहागढ का राजा सूरजमल जो जाट का पूत है तू उसको पत्र लिख तेरी जरुर सुनेगा जाट वीर.
जेल मे कलम ना थी तो भंगी औरत एक मोर के पंख का टुकडा लाई और हरजोत ने अपने खून से पत्र लिखा लिखते2 आंसु भी पत्र पर गिर गए थे
और
औरत को अपने घर का पता बताके पत्र उसको सोँप दिया और भंगि औरत ने पत्र पंडित को दिया और कहा जाओ लोहागढ और अपनी बेटी कि इज्जत के रक्षक को ये पत्र पहुँचाओ
जहाँ हर फरियादि कि फरियाद सुनी जाती है जाट दरबार मेँ आपकि भी सुनी जाएगी
तो पंडितानि पत्र को लेके जाट दरबार मेँ पहुँच जाती है पत्र मेँ वो मोर का पंख भी रखा था
जाट दरबार सजा हुआ था और पंडितानी दहाड मार2 के रोने लगी
तो सुरजमल बोले कौन है ये दुखिया इसकि फरियाद सुनो तो पत्र पढके राजा को सुनाया गया
तो सूरजमल ने कहा बस पंडितानि तु वापस दिल्ली जा और उसके साथ एक वीरपाल नाम के गुजजर सैनिक भेजा और कहा कि बादशाह को कहना कि या तो हरजोत को छोड या दिल्ली छोड...
तो वीरपाल गुज्जर मुगल दरबार मेँ पहुचा और बादशाह को सूरजमल का आदेश सुनाया तो बादशाह हंसते हुए कहता है कि हमेँ मालुम था कि सूरजमल जरुर हमसे पंगा लेगा
ठीक है सुनो वीरपाल -- सूरजमल से कहना कि जाटनी भी साथ लाए पंडितानि क्या छुडाएगा वो...
बस फिर क्या था वीरपाल ने दरवार मेँ तलवार का कहर छोड दिया मुगलोँ से लडते2 वीरगति को र्पाप्त हो गया
लेकिन एक बात कह के गया था वीरपाल कि"°°तूतो का जाटनी लेगौ पर तेरी नानी याद दिला जाएगौ वो पूत जाटनी कौ जायौ है"°°
जब ये खबर भरतपुर मे सूरजमल को मिली तो आग बबूला हो गये और बोले"अरे आंवे लोहागढ के जाट और दिल्ली मै मचा दो लूटम पाट"
और
दिल्ली पर चढाई करने तैयारि जल्दी करली गई एवं आज जहाँ गुडगांव बसा हुआ है वहाँ अपना डेरा डाल दिए
और
एक सैनिक को बोले कि बादशाह को कहो जाट बहादुर आए है तो बादशाह भी अपनी सेना ले के मैदान मे आता है और युद्द होने लगता है
याद दिलाना चाहता हूँ कि बादशाह कि शर्त के मुताबिक रानी हिँडोली भी युद्द मे गई थी लेख बहुत बडा है भाइयो शोरट लिख रहा हुँ माफ करना
तो कुछ ही देर मेँ मुगलोँ के छक्के छूट गए और बादशाह को चाल सुझी एवं सूरजमल के पैरोँ मेँ गिरके गिडगिडाने लगा और गाय कि शौगंध महाराजा को खिलाने लगा सूरजमल का ह्रदय पिगल गया और युद्द समाप्त हो गया हरजौत कि शादि सूरजमल ने अपने र्खचे से कराई
बादशाह ने महाराजा को बोला कि अब हमारि लडाई नाहै सो कुछ दिन दिल्ली मेँ ही रहो लालकिले मे रहने का इंतजाम है सूरजमल चाल को ना समझ पाए और एक दिन जब महाराजा घूमने नदी के किनारे निकले तो धोके मार दिया गया
और
बादशाह ने अपनी औकात दिखादि
फिर बाद मेँ पुत्र जवाहर सिहँ ने दिल्ली को जीता जिसकि याद मेँ आज भी जवाहर बुर्ज भरतपुर मेँ बनवाया गया जिसपर वंशजो का राजतिलत होता था

Comments

  1. This is pure garbage—Arun Malik Jaat and the whole community should be ashamed. Making up this Brahmin girl rescue story to glorify Suraj Mal? Are you all THIS desperate for the JAT’s historical relevancy? Pathetic. He didn’t attack Delhi in 1753 to save anyone; Suraj mal actually took advantage of Nawab Safdar Jung’s Rebellion against the Mughals of Delhi and teamed up with him and his army for a power grab against the Mughals. Quit making up fake history on the internet. Absolute nonsense, it’s embarrassing.

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