जाटवाद बनाम ब्राह्मणवाद

आज से 2500 ई.पू. जाटों ने सिंधु घाटी की सभ्यता का निर्माण चार्वाक दर्शन (भौतिकवादी दर्शन) के आधार पर किया था । उस समय जाट जाति नाग जाति कहलाती थी । सम्राट तक्षक इस जाति के सबसे बड़े चौधरी थे और नांगलोई (दिल्ली), तक्षशिला (पाकिस्तान) तथा नागौर (राजस्थान) नाग जाति के केन्द्रीय स्थान थे । नागों ने ही नागरी लिपि को विकसित किया था जो आगे चलकर देवनागरी कहलाई ।

इस सिंधु घाटी की सभ्यता के खिलाफ ब्राह्मणों ने षड्यन्त्र रचे तथा सम्राट तक्षक की हत्या करके एवं चार्वाक दर्शन को धीरे-धीरे खत्म करके, इस महान् सभ्यता का पतन कर दिया । नोट करें तक्षक और सिंधु गोत्र आज भी जाटों के ही गोत्र हैं ।

सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन के बाद ब्राह्मणों ने वैदिक युग (1500 ई.पू. से 600 ई.पू.) की शुरुआत की । इस वैदिक युग में वेदों की रचना हुई, पाखंडों को बढ़ावा मिला तथा जन्म आधारित जाति व्यवस्था की शुरुआत हुई । नाग (जाट) इस वैदिक व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करते रहे । आगे चलकर इस संघर्ष में से महात्मा बुद्ध की ब्राह्मणविरोधी मूवमेंट खड़ी हुई । शाक्य वंशीय नागमुनि महात्मा बुद्ध ने सर्वाधिक क्रान्तिकारी नागों को नये नाम ‘जाट’ के नाम से सम्बोधित किया । जाट शब्द का अर्थ है “ब्राह्मणवाद के खिलाफ जुटे हुए सैनिक ।”

इस काल में बुद्ध के हीनयान-महायान की भान्ति जाटों के गोत्र प्रचलित हुए । जाटयान, राजयान, कादयान, ओहल्याण, बालयान, दहियान (दहिया), गुलियान (गुलिया), नवयान (नयन), लोहयान (लोहान), दूहयान (दूहन), सिद्धू (सिद्धार्थ गौतम), महायान (मान) इत्यादि ।

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