किसान और कमेरे
सर छोटूराम किसान और कमेरे (वैसे तो मेघों और जाटों के संघर्ष का एक अध्याय भी है जो काफी पुराना है. लेकिन अब तक वह संघर्ष जमीन के मालिकों और कमेरों के बीच सहयोग और परस्पर निर्भरता मेँ बदल चुका है. जाति के तौर पर भले ही वे अलग-अलग हों लेकिन कृषि और संबद्ध कार्यों के कारण उनकी समस्याएँ आपस मेँ जुडी हैं. अच्छी फसल से या खराब फसल से वे समान रूप से प्रभावित होते हैं. सामाजिक उथल-पुथल को इन्होंने संयुक्त रूप से और अलग-अलग झेला है. पिछले दिनों फेसबुक पर राकेश सांगवान की वॉल पर उनका एक आलेख पढ़ने को मिला. इसमें सर छोटूराम के विचारोँ के आधार पर दलितों और जाटों के धर्म सहित कई साझा संकटों पर भी प्रकाश डाला गया है. अभी तक मेघनेट पर जो लिखा है वह मेघ sensibility की दृष्टि से लिखा गया है. प्रस्तुत आलेख जाट दृष्टिकोण पर पर्याप्त रूप से प्रकाश डालता है. राकेश सांगवान ने इसे मेघनेट पर प्रकाशित करने की अनुमति दी है इसके लिए उनका आभार.) "तुम अगर बिछड़े रहो तो चंद कतरे ही फकत अगर मिल जाओ तो बिफरा हुआ तूफान हो तुम" हमारे देश में जाति आधार पर जनगणना आखिरी बार 1931 में हुई थी. उस वक़्त भारत मे