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Showing posts from June, 2017

किसान और कमेरे

सर छोटूराम किसान और कमेरे (वैसे तो मेघों और जाटों के संघर्ष का एक अध्याय भी है जो काफी पुराना है. लेकिन अब तक वह संघर्ष जमीन के मालिकों और कमेरों के बीच सहयोग और परस्पर निर्भरता मेँ बदल चुका है. जाति के तौर पर भले ही वे अलग-अलग हों लेकिन कृषि और संबद्ध कार्यों के कारण उनकी समस्याएँ आपस मेँ जुडी हैं. अच्छी फसल से या खराब फसल से वे समान रूप से प्रभावित होते हैं. सामाजिक उथल-पुथल को इन्होंने संयुक्त रूप से और अलग-अलग झेला है. पिछले दिनों फेसबुक पर राकेश सांगवान की वॉल पर उनका एक आलेख पढ़ने को मिला. इसमें सर छोटूराम के विचारोँ के आधार पर दलितों और जाटों के धर्म सहित कई साझा संकटों पर भी प्रकाश डाला गया है. अभी तक मेघनेट पर जो लिखा है वह मेघ sensibility की दृष्टि से लिखा गया है. प्रस्तुत आलेख जाट दृष्टिकोण पर पर्याप्त रूप से प्रकाश डालता है. राकेश सांगवान ने इसे मेघनेट पर प्रकाशित करने की अनुमति दी है इसके लिए उनका आभार.) "तुम अगर बिछड़े रहो तो चंद कतरे ही फकत अगर मिल जाओ तो बिफरा हुआ तूफान हो तुम" हमारे देश में जाति आधार पर जनगणना आखिरी बार 1931 में हुई थी. उस वक़्त भारत मे

खाप V/S कोर्ट

1-खाप में लगभग 20 आदमियो से लेकर 200 आदमी तक सुनवाई के बाद फैसला देते है,     जिसे पहले गांव स्तर पर    फिर तपा स्तर पर     फिर खाप स्तर पर और    फिर सर्वखाप स्तर पर चुनोतियाँ दी जा सकती है,    बल्कि    कोर्ट में एक आदमी बैठता है, अगर उसका मूड खराब है तो गई भैंस पानी मे। 2- खाप सिस्टम में अपराधी को नही अपराध को खत्म करके भाईचारा स्थापित करने पर जोर दिया जाता है     बल्कि     कोर्ट में आपस मे फांसी उम्रकैद करवा के दुश्मनी पक्की करवाई जाती है। 3- खाप में अगर 200 आदमी आ रहे है तो उनकी कोई फीस नही होती जबकि खाना पीना भी नही होता,     बल्कि     कोर्ट में मुकदमो में खर्चो पर इंसान को किडनी तक बेचनी पड़ सकती है, यहां भूखे पेट भजन ना होयो, 4- खाप सिस्टम में अपराधी समाज की आंखों में शर्मशार हो जाता है,     बल्कि     उसे जेल भेज कर कोर्ट उसको पक्का उघाड़ा बना देती है, 5- चाऊमीन वाला बयान देने वाले कि इज़्ज़त उतार ली थी खाप ने, वो इंसान आज तक सामने नही आया,     बल्कि    आँसुवीर जज साहब जल्द ही किसी अच्छे पद पर आसीन होंगे,   कमियां खाप में भी है और कोर्ट में भी है, निश्छल और निर्मल कोई न