शूटर दादी
प्रकाशो देवी तोमर उत्तर प्रदेश के बाघपत जिले कि जोहड़ी गाव कि एक जाटनी है प्रकाशो देवी ,चन्द्रो देवी कि रिश्ते में देवरानी है प्रकाशो तोमर के चार बेटों और बेटियों है उनकी बेटी सीमा तोमर और पोती रूबी तोमर अंतरराष्ट्रीय शूटर हैं।
पहली नजर में, हट्टी-कट्टी प्रकाशो हर जगह मौजूद दूसरी अन्य बूढ़ी दादियों की तरह किसी भी तरह से अलग नहीं दिखतीं। लेकिन जब वह आपको घूर कर देखेंगी तब पता चलेगा कि वह कोई साधारण महिला नहीं है।[प्रकाशो देवी के अनुसार जब प्रकाशो तोमर ने निशानेबाज़ी सीखना शुरू किया तो गाँव में मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया गया| कोई कहता कि बुढ़िया ने नवाबों के शौक पाल लिए है, तो कोई कहता, बंदूक उठा ही ली है तो कारगिल चली जा
यह बताते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान उभर आती है कि कैसे एक बार जब उन्होंने एक निशानेबाजी प्रतियोगिता में पुरुषों को हरा दिया, तो हारे हुए अधिकांश पुरुषों ने उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने से मना कर दिया।
चेन्नई में वेटरं चैंपियनशिप के दौरान उपविजेता ने विजेता प्रकाशो तोमर के साथ मंच साझा करने से शर्म के मारे इनकार कर दिया जब उन्होंनेचेन्नई व दिल्ली में मेडल जीते तो पुरुष निशानेबाजों ने मेडल लेने के लिए मेरे साथ मंच पर खड़े होने से इंकार कर दिया था। क्योंकि उन्हें एक बूढ़ी औरत के साथ मंच पर शर्म महसूस हो रही थी।
प्रतियोगिताओं में प्रकाशो का पहला और सबसे यादगार लम्हा था – जब दिल्ली पुलिस के एक पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) गांव की इस महिला से हारने पर इतने शर्मिंदा हुए कि उन्होंने पुरस्कार वितरण समारोह का इंतजार भी नहीं किया और वहां से चले गये।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में लोग अक्सर बंदूकों का इस्तेमाल आपसी विवादों को सुलझाने के लिये करते हैं और इस क्षेत्र में पुरुषों को बंदूकों के साथ घमंड में चूर होकर चलते देखना आम बात है। 75 वर्षीय शार्प शूटर इस जाट दादी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बंदूकधारी पुरुषों के चेहरों को न सिर्फ शर्म से लाल कर दिया, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर उन्होंने अपनी उम्र के तीसरे पड़ाव में युवा लड़कियों को बाहरी दुनिया में बेधड़क हो कर सामने आने के लिये प्रेरणा दी है।
निशानेबाज़ी और बंदूक वाली दादी
प्रकाशो तोमर (70)को यह शौक बचपन में नही बल्कि बुढ़ापे में लगा उनका कहना है कि ‘‘जब मैंने बंदूक उठाई तो मुझमें अपार साहस और आत्मविश्वास आ गया’’। उनके इसी आत्मविश्वास का असर उस क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं पर भी हुआ है। प्रकाशो उनके लिये रोल-मॉडल बन गयी
प्रकाशो कुछ समय बिताने के लिये अपने पोते को लेकर जौहरी के बेसिक शूटिंग रेंज गयी थीं। वहां उन्होंने जिज्ञासावश एक बंदूक उठाई और कुछ गोलियां चलाईं, उस वक्त भी उनमें से लगभग सभी निशाने पर लगीं। उसके कोच राजपाल सिंह कहते हैं ‘वह सहज थीं’ और उस दिन से बंदूकें उनकी दिनचर्या में शामिल हो गयीं।
वह प्रतिदिन शूटिंग रेंज में अपने पोते को लेकर आती हैं और जैसे उनका पोता अभ्यास करता है वैसे ही दादी भी करती हैं। नियमित अभ्यास ने प्रकाशो को निशानेबाजी में प्रवीण बना दिया और अगले कुछ महीनों में जब तक वह पूरी तरह से निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के प्रति आश्वस्त हुईं, वह अचूक निशानेबाज बन चुकी थीं।
पदक
प्रकाशो दादी ने कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है और करीब 200 मेडल जीत चुकी है| प्रकाशो तोमर ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में लगभग 25 मेडल जीतकर रिकार्ड कायम किया।
धीरे-धीरे वह निशानेबाजी की दुनिया उतर आईं। 2001 में उन्होंने वाराणसी में 24वीं उप्र राज्य निशानेबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इसके बाद अब उनको भी याद नहीं है कि उन्होंने कितनी प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अचूक निशाने लगाए और पदक जीते। वे राष्ट्रीय स्तर पर 25 से अधिक खिताब जीत चुकी हैं। एक प्रतियोगिता में एयर पिस्टल .32 बोर की यह महारथी पुलिस के डीआईजी को भी मात दे चुकी हैं, एयर पिस्टल 25 मीटर में उन्होंने 2001 में यूपी स्टेट चंडीगढ़ में सिल्वर, 2001 में अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में स्वर्ण, 2001 में तमिलनाडु में नेशनल प्रतियोगिता में स्वर्ण, 2002 में दिल्ली में नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड जीता।
काशो कोयंबटूर में सिल्वर मेडल, , और चेन्नई में सिल्वर मेडल जीत चुकीं हैं।
2009 में सोनीपत में हुए चौधरी चतर सिंह मेमोरियल प्रतिभा सम्मान समारोह में उन्हें सोनिया गांधी ने सम्मानित किया। उत्तर प्रदेशीय महिला मंच के संस्थापक और कलम के योद्धा रहे स्व0 वेद अग्रवाल की स्मृति में दिए जाने वाला साहित्य-पत्रकारिता-2011 पुरस्कार ,2006 में मेरठ में उन्हें स्त्री शक्ति सम्मान मिला।
दादी की हिम्मत का फल है की अब इस गाँव की अगली पीढ़ी में भी कई और निशानेबाज़ तैयार हो रहे है| दादी को देख और भी महिलाए इस खेल को अपनाकर कई स्पर्धाओं में भाग ले रही है| इतना ही नही की दादी ने ही निशानेबाज़ी में झंडे गड़ रखे है, उनकी बेटी सीमा तोमर और उनकी पोटियाँ भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सिर उँचा किया है| सीमा खुद एक आंरराष्ट्रीय शूटर है और तीन साल से वुमैन शूटिंग की राष्ट्रीय चैम्पियन है| प्रकाशो तोमर किसान परिवार से हैं। ढेरों मेडल जीतने के बाद भी उनकी दुनिया नहीं बदली है।
वे आज भी घर के काम करती हैं और परिवार की देखरेख करती हैं। अधिक उम्र होने के बाद भी उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है।
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