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महाराजा सूरजमल

👉महाराजा सूरजमल नाम है उस राजा का, जिसने मुगलों के सामने कभी घुटने नहीं टेके राजस्थान की रेतीली जमीन में चाहे अनाज की पैदावार भले ही कम होती रही हो, पर इस भूमि पर वीरों की पैदावार सदा ही बढ़ोतरी से हुई है. अपने पराक्रम और शौर्य के बल पर इन वीर योद्धाओं ने राजस्थान के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष का नाम समय-समय पर रौशन किया है. राजस्थान मे यहाँ अनेक राजा-महाराजा पैदा हुए. पर आज की कहानी है, इन राजाओ के बीच पैदा हुए इतिहास के #जाट महाराजा सूरजमल की. जिस दौर में राजपूत राजा मुगलों से अपनी बहन-बेटियों के रिश्ते करके जागीरें बचा रहे थे. उस दौर में यह बाहुबली अकेला मुगलों से लोहा ले रहा था. सूरजमल को स्वतंत्र हिन्दू राज्य बनाने के लिए भी जाना जाता है. महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ. यह इतिहास की वही तारीख है, जिस दिन हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हुई थी. मुगलों के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देने में उत्तर भारत में जिन राजाओं का विशेष स्थान रहा है, उनमें राजा सूरजमल का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है. उनके जन्म को लेकर यह लोकगीत काफ़ी प्रचलित है. 'आखा' गढ ग

खोबे मौर्य का इतिहास

खोबे मौर्य का इतिहास Khoye Maurya (खोये मौर्य)/Khove Maurya (खोवे मौर्य)/ Khovemaurya (खोवेमौर्य) Khobey (खोबे) दलीप सिंह अहलावत के अनुसार मेवाड़ के खोबे राव मौर्य नामक व्यक्ति से एक पृथक् खोबे-मौर्य नाम पर शाखा प्रचलित हुई। चित्तौड़ राज्य का अन्त होने पर मौर्यों का एक दल खोबे राव मौर्य के नेतृत्व में वहां से चलकर हस्तिनापुर पहुंचा। वहां से गंगा नदी पार करके भारशिव (जाटवंश) शासक से विजयनगर गढ़ पर युद्ध किया। चार दिन के घोर युद्ध के बाद वहां के भारशिवों को जीत लिया। खोबे मौर्यों में से वैन मौर्य को विजयनगर का राजा बनाया गया। परन्तु बुखारे गांव के कलालों द्वारा राजा वैन तथा उसके परिवार को विषैली शराब पिलाकर धोखे से मार डाला। इस परिवार की केवल एक गर्भवती स्त्री बची जो कि अपने पिता के घर गई हुई थी। वहां पर ही उसने एक लड़के को जन्मा। इस खोबे वंश का पुरोहित पं० रामदेव भट्ट इस लड़के को लेकर अकबर के पास पहुंचा। स्वयं मुसलमान बनकर अकबर से अपने यजमान राजा वैन के एकमात्र वंशधर एकोराव राणा को विजयनगर दिलाने की अपील की। इस लड़के के जवान होने पर पं० रामदेव भट्ट और एकोराव राणा ने मुगल सेना सहित मु

कबडडी में देशभर के युवाओं की प्रेरणा बना खेत में फावडा चलाने वाला ये जाट नितिन तोमर

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कबडडी का रोमांच देशभर में चरम पर है, खासतौर से युवा इस खेल में खासी दिलचस्पी ले रहे है। प्रो कबड्डी लीग ने भारत के गांव-गांव में खेले जाने वाले इस पारंपरिक खेल की पूरी दुनिया में दिलचस्पी बडा दी है। इस बार प्रो कबड्डी लीग में वेस्ट यूपी के बागपत जिले का एक जाट खिलाडी युवाओं के दिलों पर छाया है। इस सीजन का ये सबसे महंगा खिलाडी है इनका नाम है नितिन तोमर। नितिन तोमर साधारण परिवार से है और वह पहलवानी करना चाहते थे, लेकिन किस्मत देखिये कबडडी को चुनने वाले नितिन तोमर ने पहली बार में सबसे महंगा खिलाडी बनकर एक ऐसा रिकार्ड कायम कर दिया है, जो सभी को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। कबडडी जैसे भारतीय पारंपरिक खेल की तरफ युवाओं की रुचि कम ही थी, लेकिन प्रो कबड्डी लीग ने युवाओं को इस खेल को अपना कैरियर बनाने की राह दिखाई, जिसके सबसे बडे आदर्श बनकर उभरे है नितिन तोमर। खेत में फावडा चलाने वाले नितिन तोमर यूं ही कबडडी के सरताज नहीं बन गये, इसके पीछे उनकी जबरदस्त मेहनत छिपी हुई है। प्रो कब्बडी लीग के सभी मैचों में अपना बेहतरीन प्रदर्शन करके दिखाने वाले उत्तर प्रदेश के नीतिन तोमर यूपी योद्धा के कप्तान ह

Jat Regiment Interesting Facts | जाट बलवान , जय भगवान ।

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जाट रेजीमेंट के बारे मे रोचक तथ्य  Jat Regiment Interesting Facts स्थापना वर्ष : 1795 आदर्श वाक्य : “ संगठन व वीरता ” युद्धघोष : “ जाट बलवान जय भगवान ” मुख्यालय : बरेली, उत्तरप्रदेश आकार : 23 बटालियन जाट रेजिमेंट भारतीय सेना की एक इंफेंट्री रेजिमेंट है और भारत में सबसे पुरानी और सबसे अधिक पदक प्राप्त करने वाली रेजीमेंट में से एक है। अपने 200 से अधिक वर्षों के जीवन में, रेजिमेंट ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध सहित भारत और विदेशों में अनेक युद्धों में भाग लिया है। सन 1839 से 1947 के बीच यह रेजिमेंट 9 वीरता , 2 विकटोरिया और 2 जॉर्ज पुरस्कारों के साथ 41 युद्ध सम्मान प्राप्त कर चुकी है । जाट रेजिमेंट के पास 2 अशोक चक्र , 35 शौर्य चक्र , 10 महावीर चक्र , 2 विक्टोरिया क्रॉस , 2 जॉर्ज सम्मान , 8 कीर्ति चक्र , 39 वीर चक्र , और 170 सेना पदक भी शामिल हैं । ये काफी पुराने आंकड़े है इसलिए नए आंकड़ो के अनुसार जाट रेजिमेंट के पास इनसे भी ज्यादा पदक है । इस रेजिमेंट में मुख्यतः पश्चिमी उत्तरप्रदेश , हरियाणा , राजस्थान और दिल्ली के हिन्दू जाटों की भर्ती की जाती है । ज

खाप पंचायत जाट जाति की सर्वोच्च न्याय व्यवस्था

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खाप पंचायत जाट जाति की सर्वोच्च न्याय व्यवस्था हैं मीडिया औऱ भाजपा सरकार ने हमारी न्याय व्यवस्था को बहुत बदनाम किया, क्योंकि इन्हें पता हैं जब तक खाप हैं तब तक  जाट हैं मजबूत हैं आज भी जहाँ खाप पंचायत हैं वहाँ के जाट सबसे ताकतवर होते हैं आज यह व्यवस्था सिमटकर आधे हरियाणा औऱ पश्चिमी उoप्रo के 4 जिलों तक सीमित हो गई हैं खाप पंचायत का सबसे ज्यादा प्रभाव मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, सोनीपत, रोहतक, झज्झर औऱ जींद इन्हीं सात जिलों मे सिमट गया हैं ये हमारे लिए चिंता का विषय है भारत मे जाट 8 करोड़ हैं औऱ 124 जिलों मे प्रभाव रखते हैं उनमें से बस 7 जिलों मे सिमट गई , हमारी प्राचीन न्याय व्यवस्था हमारा सविंधान . खाप पंचायत (जाटलैंड) की राजधानी सौरम (मुजफ्फरनगर) मे हैं यही से पूरे भारत की खापो का फरमान जारी होता था जोकि सिंध, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, प्राचीन हरियाणा तक के जाटो को एक कर देती थी आज खाप पंचायत मुजफ्फरनगर के आसपास के जिलों मे बच गई हैं औऱ अगर हम अभी भी जागरूक नहीं हुए तो हम अपनी प्राचीन धरोहर को खो देंगे, जोकि हमारी जाति के नाश का कारण बनेगी , बस एक बात ध्यान रखना चाहे ह

पश्चिमी उत्तर प्रदेश (जाटलैंड) के ऐसे पांच गाव

पश्चिमी उत्तर प्रदेश (जाटलैंड) के ऐसे पांच गाव जो पुरे प्रदेश में अपनी अलग पहचान रखते है जाटों में गावो का महत्तव प्राचीन काल से है ऐसे ही प्रसिद्ध गाव , 1- सिसोली (मुज्फ़रनगर) बालियान गोत्र का ये गाव बाबा टिकैत का जन्म स्थल है प्राचीन काल से ये योध्ययो का गाव रहा है इस गाव ने 3 p.m और 5 c.m को करवे से पानी पिया रखा है एक समय ये गाव भारत की किसान राजनीती निर्धारित करता था प्राचीन काल से ही ये गाव बालियान खाप की राजधानी रहा है और प्राचीन काल से ही बालियान जाटों की एक बड़ी और दबंग गोत्र मानी जाती थी इसी गोत्र में सर्व खाप का मुख्यालय था 2- मलकपुर (बागपत) तोमर गोत्र का ये गाव पहलवानों के लिए जाना जाता है इस गाव में 3 अर्जुन अवार्ड है कब्बडी के भी काफी खिलाडी है इस गाव की टक्कर के पहलवान पुरे भारत में नही है अगर भारत सरकार सहयोग करे तो ओलिंपिक में कई मैडल दिला सकता है इस गाव का नाम भी बहुत प्रसिद्ध है 3- भैंसी (मुज्फ़रनगर ) अहलावत गोत्र का ये गाव आज भी लुटेरो का गाव कहा जाता है ये गाव प्राचीन काल में डीगल के लुटेरो ने बसाया था इस गाव के डकैत बहुत प्रसिद्ध थे आज ये गाव खतौली के आस पास के 1

खाप पंचायत

खाप पंचायत एक पुरानी संस्था है । छठी शताब्दी में महाराजा हर्षवर्धन ने सर्वखाप पंचायत बुलाई थी । सही मायने में इसका विस्तार मध्यकालीन युग में हुआ था, जब कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं थी । इसका मुख्य कार्य अपने सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करना तथा उनके आपसी झगड़ों का निपटारा करना था। उस काल में और 1857 के अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खापों की प्रशंसनीय भूमिका रही है। खाप के सब सदस्यों में खून का रिश्ता माना जाता है।  इसलिये विवाह पर कई प्रकार के प्रतिबंध है - जैसा कि सगोत्र विवाह , गांव में विवाह, पड़ोस के गांव में वैवाहिक संबंधों पर प्रतिबंध है। फिर कुछ गोत्रों में भाईचारा माना जाता है और उनमें वैवाहिक संबंध पर रोक है। हरियाणा के कुछ जिले, दिल्ली देहात , पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली से सटा हुआ राजस्थान का क्षेत्र खाप क्षेत्र में आता है। यह अधिकांश रूप से गोत्र आधारित व्यवस्था है। किसी गंभीर समस्या पर विचार करने के लिये सब या कुछेक खापों के सम्मेलन को सर्वखाप पंचायत की संज्ञा दी जाती है। पिछले कई सालों से हरियाणा की खाप पंचाय

बाबा भय सिंह

इतिहास के पन्नो में खोये हुए योद्धा - कुछ महापुरुष ऐसे होते है जिनका नाम इतिहास के पन्नो में खो जाता है जाट युद्ध प्रिय रहा है पर कमी ये रही है कि जाट कलम का कमजोर रहा है ऐसे महापुरषो का इतिहास भुला दिया गया जो स्वर्णिम अक्षरो में लिखना चाहिए था आज बात करते है बाबा भय सिंह की, बाबा भय सिंह का नाम भोर सिंह था जिनका जन्म डीगल गांव जिला झज्जर (हरियाणा) में हुआ था जिनके नाम पर गांव भैंसी ( मुज़फ्फरनगर ) का नाम पड़ा शुरू शुरू में इस गांव को भय सिंह की ढाणी  कहते  थे जो बाद में अंग्रेजो ने बिगाड़ कर भैंसी कर दिया कुछ लोग बाबा भय सिंह को लुटेरा कहते है जिनका ख़ौफ़ बहुत था परंतु बाबा भय सिंह गरीबो के रोबिन हुड थे जो बड़े बड़े व्यापारियों को लूट कर गरीबो में बाटते थे बाबा भय सिंह ने आस पास के गावो के जाटो के साथ मिलकर 1761 में अहमदशाह के काफिले को लूट लिया था फिर बाबा भय सिंह आस पास के जाटो को लेकर यमुना पार करके कई समूह में गांव बसाये जिसमे अहलावत गोत्र के साथ दलाल गोत्री जाट और अन्य गोत्र भी थे कुछ अहलावत जाट कंडेरा - तोमर गोत्र के गांव में रुके ( बागपत ) में रुके, कुछ ने

किसानों के मसीहा चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का जीवन परिचय

किसानों के मसीहाः त्याग व सेवा का प्रतीक माना जाने वाले बाबा टिकैत को न तो कभी ताज का न राज का मोह था। जीवन भर निष्पक्ष और निस्वार्थ भाव से किसानों की सेवा को अपना धर्म मान जीवन भर सेवा करते रहे। किसानों के तारणहार, चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) जिले के सिसौली गांव में 1935 में एक बालियान गोत्रीय जाट किसान परिवार में हुआ था। चौधरी टिकैत ने शिक्षा गांव के ही एक जूनियर हाई स्कूल में कक्षा 7 तक प्राप्त की। चौधरी टिकैत के पिता का नाम श्री चौहल सिंह टिकैत व माता का नाम श्रीमति मुख्तयारी देवी था। चौधरी चौहल सिंह टिकैत बालियान खाप के चौधरी थे इनके पूर्वज राजकुमार राव विजय राव ने हरियाणा धावनी नगर से सन् 845 ई0 में उत्तर प्रदेश में आकर शिवपुरी नामक गांव बसाया। वहीं शिवपुरी गांव सिसौली के नाम से जाना जाता है। शिवपुरी गांव के आस-पास बालियान गौत्र के कुल 84 गांव आकर बसे। शिवपुरी गांव अपनी स्थापना काल से ही बालियान खाप के चौधरी का निवास स्थान रहा है। एक किंवदन्ती के अनुसार बालियान खाप की बहादुरी एवं वफादारी से प्रभावित होकर राजा हर्षवर्धन ने कार्य

जय जाट , जय जाटलैंड

जाटलैंड में पता नही कितनी बोली है कितनी संस्कृति है आज हम जाटलैंड के सबसे दबंग क्षेत्र जो उत्तर प्रदेश जैसे नाम में अपनी पहचान खो रहा है उसके बारे में बताएंगे, ( कुरु प्रदेश )  हरियाणा के जाटो की अलग पहचान, पंजाब के जाटो की अलग पहचान, राजस्थान के जाटो की अलग पहचान,  और हम कहाँ है  हम उत्तर प्रदेश के है, नाम से ही अपनेपन वाली बात नही आती है उत्तर प्रदेश के जाटो की संस्कृति दो भागो में विभाजित है एक ब्रज की  दूसरी कुरु प्रदेश की ( मुज़फ्फरनगर , मेरठ , बागपत , शामली , सहारनपुर , बिजनोर , अमरोहा , हापुड़ , गाज़ियाबाद और बुलंदशहर ) ये क्षेत्र कहलाता है कुरु प्रदेश , जाट वंश के प्रतापी राजा कुरु के नाम पर इस क्षेत्र का नाम कुरु पड़ा, यहाँ की कौरवी (खड़ी) भाषा विश्व प्रसिद्ध है और यहाँ के जाटो को प्राचीन समय में कौरवी जाट कहा जाता था कुरु प्रदेश का जाट दुनिया का सबसे लड़ाकू जाट माना है कुरु बैल्ट के जाट हिन्दू, मुस्लिम और सिख तीनो धर्मो में है कौरवी जाटो का इतिहास स्वर्णिम रहा है और यहाँ के जाटो में धर्म खत्म करके सिर्फ जाट संस्कृति को दोबारा जीवित करना है और यहाँ