खाप पंचायत

खाप पंचायत एक पुरानी संस्था है । छठी शताब्दी में महाराजा हर्षवर्धन ने सर्वखाप पंचायत बुलाई थी । सही मायने में इसका विस्तार मध्यकालीन युग में हुआ था, जब कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं थी । इसका मुख्य कार्य अपने सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करना तथा उनके आपसी झगड़ों का निपटारा करना था। उस काल में और 1857 के अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खापों की प्रशंसनीय भूमिका रही है। खाप के सब सदस्यों में खून का रिश्ता माना जाता है। इसलिये विवाह पर कई प्रकार के प्रतिबंध है - जैसा कि सगोत्र विवाह, गांव में विवाह, पड़ोस के गांव में वैवाहिक संबंधों पर प्रतिबंध है। फिर कुछ गोत्रों में भाईचारा माना जाता है और उनमें वैवाहिक संबंध पर रोक है। हरियाणा के कुछ जिले, दिल्ली देहात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली से सटा हुआ राजस्थान का क्षेत्र खाप क्षेत्र में आता है। यह अधिकांश रूप से गोत्र आधारित व्यवस्था है। किसी गंभीर समस्या पर विचार करने के लिये सब या कुछेक खापों के सम्मेलन को सर्वखाप पंचायत की संज्ञा दी जाती है। पिछले कई सालों से हरियाणा की खाप पंचायत अपने फरमानों की वजह से चर्चा में रही है। वैवाहिक जोड़ों को भाई-बहन बनाने का फरमान, परिवारों का सामाजिक बहिष्कार या उनके गांव से निष्कासन, ऑनर किलिंग-सम्मान के लिये मृत्यु दण्ड इत्यादि मामलों में हरियाणा की खापे मीडिया में छाई रही हैं। अतीत में खापे न्याय के लिये लड़ती रही हैं। जब अलाउद्दीन खिलजी ने गंगा स्नान पर जजिया लगाया तो सर्वखाप पंचायत ने गढ़ गंगा पर इसके विरुद्घ मोर्चा लगाया था और तत्कालीन सरकार को यह कर वापस लेना पड़ा। 1857 में खाप के सूरमें अंग्रजों के खिलाफ लड़े और शहीद हुए।

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