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Showing posts from 2016

यू सूरजमल जाटनी का जाया है या तो तू हरदौल को छोड़, वर्ना दिल्ली छोड़!

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जब एक ब्राह्मण की बेटी हरदौल को (उसकी माँ की पुकार पर) कैद से छोड़ने हेतु, महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के बादशाह अहमदशाह को कहलवाया कि, "या तो हरदौल को छोड़, वर्ना दिल्ली छोड़!" अहमदशाह ने उल्टा संदेशा भेजा, "सूरजमल से कहना कि जाटनी भी साथ ले आये, पंडितानी तो क्या छुड़वाएगा वो हमसे! "इस पर लोहागढ के राजदूत वीरपाल गुर्जर वहीँ बिफर पड़े और वीरगति को प्राप्त होते-होते कह गए, "तू तो क्या जाटनी लैगो, पर तेरी नानी याद दिला जायेगो, वो पूत जाटनी को जायो है। "इस पर सूरजमल महाराज ललकार उठे, "अरे आवें हो लोहागढ़ के जाट, और दिल्ली की हिलादो चूल और पाट! "और जा गुड़गांव में डाल डेरा बादशाह को संदेश पहुँचाया, "बादशाह को कहो जाट सूरमे आये हैं अपनी बेटी की इज्जत बचाने को, और साथ में जाटनी (महारानी हिण्डौली) को भी लाये हैं, अब देखें वो जाटनी ले जाता है या हमारी बेटी को वापिस देने खुद घुटनों के बल आता है।"और महाराजा सूरजमल का कहर ऐसा अफ़लातून बन कर टूटा मुग़ल सेना पर कि मुग़ल कह उठे: तीर चलें, तलवारें चलें, चलें कटारें इशारों तैं, अल्लाह मियां भी बचा न

शूटर दादी

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प्रकाशो देवी तोमर उत्तर प्रदेश के बाघपत जिले कि जोहड़ी गाव कि एक जाटनी है प्रकाशो देवी ,चन्द्रो देवी कि रिश्ते में देवरानी है प्रकाशो तोमर के चार बेटों और बेटियों है उनकी बेटी सीमा तोमर और पोती रूबी तोमर अंतरराष्ट्रीय शूटर हैं। पहली नजर में, हट्टी-कट्टी प्रकाशो हर जगह मौजूद दूसरी अन्य बूढ़ी दादियों की तरह किसी भी तरह से अलग नहीं दिखतीं। लेकिन जब वह आपको घूर कर देखेंगी तब पता चलेगा कि वह कोई साधारण महिला नहीं है।[प्रकाशो देवी के अनुसार जब प्रकाशो तोमर ने निशानेबाज़ी सीखना शुरू किया तो गाँव में मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया गया| कोई कहता कि बुढ़िया ने नवाबों के शौक पाल लिए है, तो कोई कहता, बंदूक उठा ही ली है तो कारगिल चली जा यह बताते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान उभर आती है कि कैसे एक बार जब उन्होंने एक निशानेबाजी प्रतियोगिता में पुरुषों को हरा दिया, तो हारे हुए अधिकांश पुरुषों ने उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने से मना कर दिया। चेन्नई में वेटरं चैंपियनशिप के दौरान उपविजेता ने विजेता प्रकाशो तोमर के साथ मंच साझा करने से शर्म के मारे इनकार कर दिया जब उन्होंनेचेन्नई व दिल्ली में मेडल जीते तो पुरुष निशान

8 हज़ार जाटो ने बुरी तरह हराया था 60 हजार मराठो को

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8 हज़ार जाटो ने बुरी तरह हराया था 60 हजार मराठो को स्थान-बागरु समय-20 अगस्त 1748 मुद्दा-जयपुर की गद्दी के लिए ईश्वरी सिंह और माधो सिंह सगे भाइयो के बीच आपसी विवाद ----21 सितम्बर 1743 को सवाई राजा जय सिंह की मौत के बाद जयपुर की गद्दी के लिये विवाद शुरू हुआ,गद्दी बड़े भाई को मिलती है इसलिए ईश्वरी सिंह गद्दी पर बैठे,पर माधो सिंह ने उदयपुर के रजा जगत सिंह को साथ लेकर जयपुर पर हमला बोल दिया,1743 में जहाज पुर में-कुशवाह और जाट सैनिको की फ़ौज का सामना उदैपुर और जयपुर के बागी सैनिको से हुआ,जाट और कुशवाहा संख्या में बहोत कम होते हुए भी बहादुरी से लडे और हमलावरों को कई हज़ार सैनिक मरवा कर लड़ाई के मैदान से भागना पड़ा-जयपुर और भरतपुर के कुशवाहा और जाट जशन में डूब गए -ईश्वरी सिंह को गद्दी संभाले एक साल ही हुआ था की था माधो की गद्दी का कीड़ा काटने लगा और उसने पेशवा से मदद मांगी,पेशवा 80,000 मराठो की फ़ौज लेकर निवाई तक आ पहुंचा और ईश्वरी सिंह को मज़बूरी में बिना लडे ही 4 परगने माधो को देने पड़े अब माधो सिंह अपने राज्य का विस्तार करने में लग गया,अब ईश्वरी सिंह को संसार की इकलौती जाती जाटो की याद आई जो कि

किसानो के मसीहा चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत जी को उनके 81 वें जन्मदिवस पर शत शत नमन......

जब तक सूरज चाँद रहेगा बाबा टिकैत तेरा नाम रहेगा । . किसानों के मसीहा चौ0 महेन्द्र सिंह टिकैत का जीवन परिचय किसानों के मसीहाः त्याग व सेवा का प्रतीक माना जाने वाले बाबा टिकैत को न तो कभी ताज का न राज का मोह था। जीवन भर निष्पक्ष और निस्वार्थ भाव से किसानों की सेवा को अपना धर्म मान जीवन भर सेवा करते रहे। किसानों के तारणहार, चौ0 महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) जिले के सिसौली गांव में 1935 में एक बालियान गोत्रीय जाट किसान परिवार में हुआ था। चौ0 टिकैत ने शिक्षा गांव के ही एक जूनियर हाई स्कूल में कक्षा 7 तक प्राप्त की। चौ0 टिकैत के पिता का नाम श्री चौहल सिंह टिकैत व माता का नाम श्रीमति मुख्तयारी देवी था। चौ0 चौहल सिंह टिकैत बालियान खाप के चौधरी थे इनके पूर्वज राजकुमार राव विजय राव ने हरियाणा धावनी नगर से सन् 845 ई0 में उत्तर प्रदेश में आकर शिवपुरी नामक गांव बसाया। वहीं शिवपुरी गांव सिसौली के नाम से जाना जाता है। शिवपुरी गांव के आस-पास बालियान गौत्र के कुल 84 गांव आकर बसे। शिवपुरी गांव अपनी स्थापना काल से ही बालियान खाप के चौधरी का निवास स्थान रहा है। एक किंवदन्ती के अनुसा

दारा सिंह जय जाट, जय जाटलैंड

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दारा सिंह रन्धावा का जन्म 19 नवम्बर 1928 को अमृतसर (पंजाब) के गाँव धरमूचक में श्रीमती बलवन्त कौर और श्री सूरत सिंह रन्धावा के यहाँ हुआ था। कम आयु में ही घर वालों ने उनकी मर्जी के बिना उनसे आयु में बहुत बड़ी लड़की से शादी कर दी। माँ ने इस उद्देश्य से कि पट्ठा जल्दी जवान हो जाये उसे सौ बादाम की गिरियों को खाँड और मक्खन में कूटकर खिलाना व ऊपर से भैंस का दूध पिलाना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि सत्रह साल की नाबालिग उम्र में ही दारा सिंह प्रद्युम् नामक बेटे के बाप बन गये। दारा सिं ह का एक छोटा भाई सरदारा सिंह भी था जिसे लोग रन्धावा के नाम से ही जानते थे। दारा सिंह और रन्धावा - दोनों ने मिलकर पहलवानी करनी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गाँव के दंगलों से लेकर शहरों तक में ताबड़तोड़ कुश्तियाँ जीतकर अपने गाँव का नाम रोशन किया।अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे हैं। उन्होंने 195 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गारडियान्का को पराजित करके कामनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। 1968 में वे अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैम्पियन बन गये। उन्होंने

बाबा भय सिंह ( इतिहास के पन्नो में खोये हुए योद्धा )

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कुछ महापुरुष ऐसे होते है जिनका नाम इतिहास के पन्नो में खो जाता है जाट युद्ध प्रिय रहा है पर कमी ये रही है कि जाट कलम का कमजोर रहा है ऐसे महापुरषो का इतिहास भुला दिया गया जो स्वर्णिम अक्षरो में लिखना चाहिए था आज बात करते है बाबा भय सिंह की, बाबा भय सिंह का नाम भोर सिंह था जिनका जन्म डीगल गांव जिला झज्जर (हरियाणा) में हुआ था जिनके नाम पर गांव भैंसी (मुज़फ्फरनगर ) का नाम पड़ा शुरू शुरू में इस गांव को भय सिंह की ढाणी कहते थे जो बाद में अंग्रेजो ने बिगाड़ कर भैंसी कर दिया कुछ लोग बाबा भय सिंह को लुटेरा कहते है जिनका ख़ौफ़ बहुत था परंतु बाबा भय सिंह गरीबो के रोबिन हुड थे जो बड़े बड़े व्यापारियों को लूट कर गरीबो में बाटते थे बाबा भय सिंह ने आस पास के गावो के जाटो के साथ मिलकर 1761 में अहमदशाह के काफिले को लूट लिया था फिर बाबा भय सिंह आस पास के जाटो को लेकर यमुना पार करके कई समूह में गांव बसाये जिसमे अहलावत गोत्र के साथ दलाल गोत्री जाट और अन्य गोत्र भी थे कुछ अहलावत जाट कंडेरा - तोमर गोत्र के गांव में रुके (बागपत ) में रुके, कुछ ने दौराला (मेरठ) गांव बसाया कुछ गंगा पर करके बिजनोर गए वहाँ कई

विडियो:नाथूराम गोडसे के 150 बयान सार्वजनिक क्यों नहीं किये जाते ?

इन नेताओं ने अपनी कुर्सी की खातिर देश के वास्तविक इतिहास को आज तक धूमिल कर रखा है। जिस दिन कोई सिरफिरा (सिरफिरा इसलिये कह रहा हूँ, क्योंकि यह कार्य देश को आज़ादी दिलाने से कहीं अधिक जोखिम भरा है, जिसे करने डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी, नेताजी बोस या भगतसिंह-पंडित चंद्रशेखर आज़ाद आदि आदि को पुनर्जन्म लेना होगा।) नेता देश के वास्ताविक इतिहास को उजागर करने में सफल हो गया, भारत तो क्या समस्त विश्व में कोई अपने आपको गाँधीवादी कहने वाला नहीं मिलेगा।गांधीवाद देश को बहुत हानि पहुंचा रहा है। और इस बात को समस्त नेता समाज भलीभाँति जानता और समझता भी है। यदि समस्त भारत यह निश्चय कर ले कि “वोट केवल उसी को देंगे जो भारत का वास्तविक इतिहास सामने लायेगा। या केवल इतना बताओ गाँधी हत्या/वध देशहित में था अथवा नहीं।” अन्यथा झूठे आश्वासन देने वालों का सामाजिक बाहिष्कार किया जायेगा। यह तो सर्वविदित है कि भारत की आज़ादी में गाँधी का योगदान नहीं। एक आंदोलन सफल नहीं हुआ। अपनी रोटियाँ सेकने के क्रान्तिकारियों को गाँधी ने अपमानित ही किया है। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।