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Showing posts from September, 2016

Jaats

✍�1. राजा नाहर सिंह *तेवतिया जाट*  को  *आयरन गेट ऑफ़ दिल्ली* कहा गया ✍�2. सुशील कुमार *सोलंकी जाट* कुश्ती में  देश का इकलौता दो बार का ओलंपिक विजेता ✍�3. साइना *नेहवाल जाट* बेडमिंटन में देश की सबसे पहली ओपलम्पिक विजेता ✍�4. विजेंद्र सिंह *बेनीवाल जाट* ओलंपिक में बॉक्सिंग का सबसे पहला विजेता ✍�5. दलबीर सिंह *सुहाग जाट* वर्तमान में भारत का थल सेनाध्यक्ष ✍�6. सुनील *लाम्बा जाट* भारत का नौ सेनाध्यक्ष ✍�7. कबड्डी के 8 वर्ल्ड कप में 8 के 8 गोल्ड मैडल *जाटो* के योगदान ने दिलवाए ✍� 8. होशियार सिंह *दहिया जाट*  इकलौता जीते जी परमवीर चक्र विजेता ✍� 9. दारासिंह *रणधावा जाट*   अपराजेय योद्धा ✍�10. आचार्य देवव्रत *ओहल्याण जाट* हिमाचल के वर्तमान राज्यपाल ✍�11. चौ. चरण सिंह *तेवतिया जाट* भारत के अग्रणी किसान ह्रदय सम्राट प्रधानमंत्री रहे  ✍�12. चौ. देवीलाल *सिहाग जाट* दो बार के देश के उप-प्रधानमंत्री और जिनको देश ने प्यार से ताऊ की उपाधि दी ✍�13. निर्मलजीत सिंह *शेखों जाट* देश का इकलौता वायुसेना का परमवीर चक्र विजेता ✍�14. साक्षी *मलिक जाट* कुश्ती में  देश की इकलौती और सबसे पहली महिला वि

एक ट्रक के पीछे लिखी ये पंक्ति झकझोर गई...!!

"हाॅर्न धीरे बजाओ मेरा 'देश' सो रहा है"...!!! उस पर एक कविता इस प्रकार है कि..... 'अँग्रेजों' के जुल्म सितम से... फूट फूटकर 'रोया' है...!! 'धीरे' हाॅर्न बजा रे पगले.... 'देश' हमारा सोया है...!! आजादी संग 'चैन' मिला है... 'पूरी' नींद से सोने दे...!! जगह मिले वहाँ 'साइड' ले ले... हो 'दुर्घटना' तो होने दे...!! किसे 'बचाने' की चिंता में... तू इतना जो 'खोया' है...!! 'धीरे' हाॅर्न बजा रे पगले ... 'देश' हमारा सोया है....!!! ट्रैफिक के सब 'नियम' पड़े हैं... कब से 'बंद' किताबों में...!! 'जिम्मेदार' सुरक्षा वाले... सारे लगे 'हिसाबों' में...!! तू भी पकड़ा 'सौ' की पत्ती... क्यों 'ईमान' में खोया है..?? धीरे हाॅर्न बजा रे पगले... 'देश' हमारा सोया है...!!! 'राजनीति' की इन सड़कों पर... सभी 'हवा' में चलते हैं...!! फुटपाथों पर 'जो' चढ़ जाते... वो 'सलमान' निकलते हैं...!! मेरे देश

अस्तित्व की जंग जारी है। क्या हम जंग हार रहे हैं ?

जाट कौम ने संसार में जगह-जगह अपनी मातृभूमि के लिए खून बहाया और कभी हारे भी तो हारकर बैठे नहीं । यही एक सच्चे योद्धा की पहचान है । लेकिन मैं दूसरी जंग की बात कर रहा हूँ । उत्तर भारत के तत्कालीन संयुक्त पंजाब में महायोद्धा चौ० छोटूराम ने हमारी आर्थिक और कौमी अस्तित्व के लिए जंग लड़ी और वे सर्वदा महाविजेता रहे, लेकिन उनके देहान्त के बाद उस जीती हुई जंग को हम हार गए और उनकी उपलब्धियों को स्थाई रूप देने में सर्वथा असफल रहे । जब 15 अगस्त 1947 को सत्ता परिवर्तन हुआ तो हमारा यह सोचना सर्वथा अनुचित था कि हमने सब कुछ पा लिया है, जबकि उसी दिन से दूसरी जंग शुरू हुई और इस जंग के योद्धा बनिया (गांधी), ब्राह्मण (नेहरू) और कायस्थ (राजेन्द्र प्रसाद) बने । इस जंग की शुरुआत नेहरू ने देश में पहले आम चुनाव सन् 1952 में होने तक सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री अपनी ब्राह्मण जाति से नियुक्त करके शुरुआत की । पं० नेहरू बहुत शातिर राजनीतिज्ञ और कट्टर मनुवादी ब्राह्मण थे । प्रथम उन्होंने नीति बनाई कि जो राज्य का कांग्रेस अध्यक्ष होगा वही राज्य का मुख्यमन्त्री बनेगा । इसके लिए उन्होंने पहले गैर ब्राह्मण कांग्रेस अध

सारागढ़ी का युद्ध

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एक तरफ 12 हजार अफगान .....तो दूसरी तरफ 21 सिख ... अगर आप को इसके बारे नहीं पता तो आप अपने इतिहास से बेखबर है। आपने "ग्रीक सपार्टा" और "परसियन" की लड़ाई के बारे मेँ सुना होगा ......इनके ऊपर "300" जैसी फिल्म भी बनी है। पर अगर आप "सारागढ़ी" के बारे मेँ पढोगे तो पता चलेगा इससे महान लड़ाई सिखभूमी मेँ हुई थी .... बात 1897 की है .....नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया ......वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे। इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिँघ ने बनवाया था ..... इन किलोँ के पास सारागढी मेँ एक सुरक्षा चौकी थी .....जंहा पर 36 वीँ सिख रेजिमेँट के 21 जवान तैनात थे ...ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे। 36 वीँ सिख रेजिमेँट मेँ केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे। ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 20 जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि 12 हजार अफगानोँ से जिँदा बचना नामुमकिन है। फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया और 12 सितम्बर 1897 को सिखभूमी की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो दुनिया की पांच

बाईसा किरणदेवी

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अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है लेकिन अकबर की औछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज का मेला आयोजित करवाता था जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती थी उसे दासियाँ छल कपटवश अकबर के सम्मुख ले जाती थी एक दिन नौरोज के मेले में महाराणा प्रताप की भतीजी छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर काबू नही रख पाया और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से जनाना महल में बुला लिया जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटकर छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी और कहा नींच... नराधम तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हुं जिनके नाम से तुझे नींद नहीं आती है बोल तेरी आखिरी इच्छा क्या है अकबर का खुन सुख गया कभ

महाराजा सूरजमल

महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ. यह इतिहास की वही तारीख है, जिस दिन हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हुई थी. मुगलों के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देने में उत्तर भारत में जिन राजाओं का विशेष स्थान रहा है, उनमें राजा सूरजमल का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है. उनके जन्म को लेकर यह लोकगीत काफ़ी प्रचलित है.'आखा गढ गोमुखी बाजी, माँ भई देख मुख राजी.धन्य धन्य गंगिया माजी, जिन जायो सूरज मल गाजी.भइयन को राख्यो राजी, चाकी चहुं दिस नौबत बाजी.'" 6c="4284572001" 6f="24" 6r="6,626,278,658" Source:wikimediaवह राजा बदनसिंह के पुत्र थे. महाराजा सूरजमल कुशल प्रशासक, दूरदर्शी और कूटनीति के धनी सम्राट थे. सूरजमल किशोरावस्था सेही अपनी बहादुरी की वजह से ब्रज प्रदेश में सबके चहेते बन गये थे. सूरजमल ने सन 1733 में भरतपुर रियासत की स्थापना की थी.सूरजमल के शौर्य गाथाएंराजा सूरजमल का जयपुर रियासत के महाराजा जयसिंह से अच्छा रिश्ता था. जयसिंह की मृत्यु के बाद उसके बेटों ईश्वरी सिंह और माधोसिंह में रियासत के वारिश बनने को लेकर झगड़ा शुरु हो गया. सूरजमल

चौ. छोटूराम

दिनांक 15.04.1944 को चौ. छोटूराम ने महात्मा गांधी को एक लम्बा पत्र लिखा जिसका सारांश था कि “आप जिन्ना की बातों में नहीं आना, वह एक बड़ा चतुर किस्म का व्यक्ति है जिसे संयुक्त पंजाब व कश्मीरी मुसलमान उनको पूरी तरह नकार चुका है। मि. जिन्ना को साफ तौर पर बता दिया जाये कि वे पाकिस्तान का सपना लेना छोड़ दें।” लेकिन अफसोस, कि वहीं गांधी जी कहा करते थे कि पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा, चौ. साहब के पत्र का उत्तर भी नहीं दे पाये और इसी बीच चौ. साहब 63 साल की अवस्था में अचानक ईश्वर को प्यारे हो गये या धोखे से मार दिए गये । परिणामस्वरूप गांधी जी ने जिन्ना के समक्ष घुटने टेक दिये और जिन्ना का सपना 14 अगस्त 1947 को साकार हो गया तथा साथ-साथ जाटों की किस्मत पर राहू और केतु आकर बैठ गये। गांधी और जिन्ना जी को इतिहास ने महान बना दिया न कि उन्होंने इतिहास को महान् बनाया। जिन्ना को तो यह भी पता नहीं था कि 14 अगस्त 1947 को रमजान है जिसका रोजा देर रात से खुलेगा। उसने तो सायं पार्टी का हुक्म दे डाला था जब पता चला तो समय बदली किया। इस व्यक्ति ने इस्लामिक देश पाकिस्तान की नींव रखी। आज चाहे जसवन्त सिंह या कोई और

जाट कई देशो में अलग अलग नाम से रहते है और जाट

सभी धर्मो के अनुयायी है इसलिए जाट एक धर्मनिरपेक्ष कौम है जाट चाहे किसी भी धर्म में रहे एक दुसरे का सम्मान करते है मेरे पास बहुत से उदाहरण हैजब सन् 1983 में चौ. बलराम जाखड़ भारतीय संसद के अध्यक्ष के बतौर इंग्लैंड गये और वहाँ के संसद अध्यक्ष डा. बर्नार्ड वैदर हिल से मिले जो इन्हीं की तरह लम्बे-तगड़े थे, वे इनको देखते ही तड़ाक से बोले कि ‘आप जाट हैं?’ इस पर चौ० बलराम जाखड़ ने जब हामी भरी तो उन्होंने कहा ‘कि वे भी जाट हैं और शाकाहारी हैं।’ यह था दो जाटवंशजों का हजारों साल बाद सात समुद्र पार मिलन। यह खबर ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में दिनांक 12.07.1983 में विस्तार से छपी थी दूसरा उदाहरण देखिए कि रोमानिया देश के संसद अध्यक्ष ने सन् 1993 में भारत भ्रमण के दौरान भोपाल में बयान दिया कि ‘उनके पूर्वज भारत में पंजाब व इसके आसपास के किसी क्षेत्र के रहने वाले जाट थे यह खबर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के 30 दिसम्बर 1993 के अंक में विस्तार से छपी थी। तीसरा उदाहरण विस्तृत रिपोर्ट अमेरिका केप्रसिद्ध अखबार ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के 11 जनवरी 1880 के अंक में छपी थी, जिसमे लगभग ग्यारहवीं सदी से जो जाट यूर