जाट कई देशो में अलग अलग नाम से रहते है और जाट
सभी धर्मो के अनुयायी है इसलिए जाट एक
धर्मनिरपेक्ष कौम है जाट चाहे किसी भी धर्म में रहे
एक दुसरे का सम्मान करते है मेरे पास बहुत से उदाहरण
हैजब सन् 1983 में चौ. बलराम जाखड़ भारतीय संसद
के अध्यक्ष के बतौर इंग्लैंड गये और वहाँ के संसद
अध्यक्ष डा. बर्नार्ड वैदर हिल से मिले जो इन्हीं की
तरह लम्बे-तगड़े थे, वे इनको देखते ही तड़ाक से बोले
कि ‘आप जाट हैं?’ इस पर चौ० बलराम जाखड़ ने जब
हामी भरी तो उन्होंने कहा ‘कि वे भी जाट हैं और
शाकाहारी हैं।’ यह था दो जाटवंशजों का हजारों
साल बाद सात समुद्र पार मिलन। यह खबर ‘दैनिक
हिन्दुस्तान’ में दिनांक 12.07.1983 में विस्तार से
छपी थी दूसरा उदाहरण देखिए कि रोमानिया देश
के संसद अध्यक्ष ने सन् 1993 में भारत भ्रमण के दौरान
भोपाल में बयान दिया कि ‘उनके पूर्वज भारत में
पंजाब व इसके आसपास के किसी क्षेत्र के रहने वाले
जाट थे यह खबर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के 30 दिसम्बर
1993 के अंक में विस्तार से छपी थी। तीसरा
उदाहरण विस्तृत रिपोर्ट अमेरिका केप्रसिद्ध
अखबार ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के 11 जनवरी 1880 के अंक
में छपी थी, जिसमे लगभग ग्यारहवीं सदी से जो जाट
यूरोप में गए उन्हें जिप्सी कहा गया। इसका संक्षेप में
अर्थ है कि ‘यूरोप में पाए जाने वाले जिप्सी जाति
के लोग भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से दसवीं सदी में
गए। जाट लोग स्वाभाविक तौर पर घोड़ों से जुड़े थे।
इनकी औरतें भाग्यवादी कहानियां सुनाने में माहिर
थी। वास्तव में ये लोग खेती-बाड़ी के मास्टर थे।
इनके काले बाल लम्बी आयु तक रहते हैं और ये आर्यन
जुबान बोलते हैं। ये भारत के उत्तर पश्चिम में रहने
वाली दबंग जाट जाति से सम्बन्ध रखते हैं जिन्होंने
एक समय खलीफों को भी हरा दियाथा।’ लेख
सिद्ध करता है कि ग्यारहवीं सदी तक जाट दलों के
रूप में यूरोप जाते रहे हैं और बाद में जाने वाले जाटों
को जिप्सी के नाम से जाना जाता है। किसी
पाठक ने इस पर एतराज उठाया कि जाट जिप्सी
नहीं हो सकते क्योंकि जाट जहां भी गए, खेती
बाड़ी काधंधा अपनाया। लेकिन हमारे देश में ही
प्राचीन में कई जाटोंने खेती न अपनाकर दूसरा धंधा
अपनाया जिस कारण वे दूसरी जातियों में
सम्मिलित होते चले गए। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं।इसी
प्रकार इस्लाम धर्म को मानने वाले जाट भी हमारा
सम्मानकरते है।पाकिस्तान के पुर्व राष्ट्रपति
मोहम्मद रफिक तरार ने पद ग्रहण करने से पहले लाहौर
मे सर छोटुराम जी की मुर्ति लगाने की घोषणा
की।भगतसिह के नाम से कई चौराहो के नामकरण व
मुर्तियां लगवाई।२००३ मे जब अटल बिहारी वाजपेई
की सरकार थी तो भारत से एक शिष्टमंडल इराक
गया जिसमे बागपत से सांसद सोमपाल शास्त्री भी
शामिल थे इराक के तत्कालिन राष्ट्रपति सद्दाम
हुसैन को जब सोमपाल जी ने अपना परिचय दिया
तो शास्त्री शब्द लगा होने के कारण सद्दाम जी ने
कहा"ब्राह्मण हो क्या"।सोमपाल जी ने कहा नही
मै जाट हुं।सद्दाम हुसैन ने गले मिलकर कहा मै भी जाट
हुं।शिष्टमंडल के बाकी लोग सरकारी आवास मे रुके
जबकी सोमपाल जी को सद्दाम हुसैन अपने महल मे
लेकर गया।दुसरे दिनकी बैठक मे एक मुस्लिम
प्रतिनिधी ने सद्दाम हुसैन से पुछा की मै मुसलमान हुं
आप मुझे अपने साथ नही ले गये।इस जाट को क्यो।
सद्दाम हुसैन कहा की "धर्म तो पुजापाठ का
तरिका है इसे बदलते ही धर्म चैंज हो जाता है लेकिन
सोमपाल जी व मेरा खुन एक है यह बदल नही सकता।
मै भी जाट,सोमपाल जी भी जाट इसलिये महल इन्हे
साथ लेके गया।यह बात सोमपाल शास्त्री जी ने
२००७ मे हुये जाट सम्मेलन मे कही|
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