यहां 13 बार हारी थी अंग्रेज फौज, दीवार में धंस जाते थे तोप के गोले-

●जाटों का इतिहास गौरवशाली है। जाट राजाओं ने अपनी रियासत के लिए जान की परवाह तक नहीं की। जाटों ने मातृभूमि की सेवा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। वरना दूसरी तरफ एक कौम जो सिर्फ कागजी यौद्धा के रूप में जानी जाती है ने राज्य पाने के लिए अपनी बहन बेटियों के डोले अपने दुश्मनों को दिए । जबकि जाटों ने अपने स्वाभिमान से कभी समझोता नहीं किया, हां दूसरों की डोलियां जरूर उठाई लेकिन अपनी इज्जत पे आंच नहीं आने दी । जाटों की ऎसी ही एक रियासत थी भरतपुर। भरतपुर को राजस्थान का पूर्वी सिंह द्वार भी कहा जाता है। यहीं स्थित है ये किला, जिसे अजेय दुर्ग लोहागढ़ कहा जाता है। इस किले पर न तो अंग्रेज फतह कर पाए थे और न ही मुगल। इस किले पर 13 युद्धों के दौरान दागे गए गोलों का भी कोई असर नहीं हुआ था। तोप के गोले किले की दीवार में धंस जाते थे। यहां जाट राजाओं की हुकूमत थी, जो अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते थे।

●13 बार किले पर हमला-
इतिहासकारों के अनुसार इस किले पर अंग्रेजों ने 13 बार हमला किया था, लेकिन हर बार उन्हें नाकामी मिली। ऎसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश हो गई तो वहां से भाग गई। ये भी कहावत है कि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली थी। अंग्रेजी सेनाओं से लड़ते-लड़ते होल्कर नरेश जशवंतराव भागकर भरतपुर आ गए थे। जाट राजा रणजीत सिंह ने उन्हें वचन दिया था कि आपको बचाने के लिए हम सब कुछ कुर्बान कर देंगे।
●जाट राजाओं ने दिया था अंग्रेजों को चैलेंज-
अंग्रेजी सेना के कमांडर इन चीफ लॉर्ड लेक ने भरतपुर के जाट राजा रणजीत सिंह को सूचना दी कि वे जसवंत राव होल्कर को अंग्रेजों के हवाले कर दें। ऎसा नहीं करने पर अंजाम काफी बुरा होगा। यह धमकी जाट राजा के स्वभाव के सर्वथा खिलाफ थी। जाट राजा अपनी आन-बान और शान के लिए मशहूर रहे हैं। जाट राजा रणजीत सिंह ने भी लॉर्ड लेक को संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने कहा कि आप हमारे हौसले को आजमा लें। हमने लडना सीखा है, झुकना नहीं। यह बात अंग्रेजी सेना के कमांडर को बुरी लगी और भारी सेना के साथ भरतपुर पर आक्रमण कर दिया।
●तोप के गोले धंस जाते थे दीवार में-
यह किला ज्यादा बड़ा नहीं है। इस किले की एक और खास बात यह है कि किले के चारों ओर मिट्टी की मोटी दीवार है। इसके बाहर चारों तरफ खाई है, जिसमें मोती झील से सुजानगंगा नहर से पानी आता है। यही वजह है कि इस किले पर आक्रमण करना सहज नहीं है। क्योंकि तोप से निकले हुए गोले मिट्टी की दीवार में धंस जाते और उनकी आग शांत हो जाती। ऐसे असंख्य गोले दागने के बावजूद इस किले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही। इसलिए दुश्मन इस किले के अंदर कभी घुस नहीं सके।

●हैरान रह गए थे अंग्रेज-
लॉर्ड लेक खुद इस किले की युद्ध रोधी क्षमता को देखते और आंकते रहे। संधि का संदेश फिर दोहराया गया और राजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजी सेना को एक बार फिर ललकार दिया। अंग्रेजों की फौज को लगातार रसद और गोला बारूद आते जा रहे थे और वह अपना आक्रमण जारी रखती रही। परंतु भरतपुर के किले, और जाट सेनाएं अंग्रेजों के हमलों को झेलती रही। इतिहासकारों का कहना है कि लार्ड लेक के नेतृत्व में अंग्रेजी सेनाओं ने 13 बार इस किले में हमला किया और हमेशा उसे मुंह की खानी पड़ी और अंग्रेजी सेनाओं को वापस लौटना पड़ा।
●दिल्ली से उखाड़कर लाया गया किले का दरवाजा-
इस किले के दरवाजे की अपनी अलग खासियत है। अष्टधातु के जो दरवाजे अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के चित्तौड़ से छीन कर ले गया था उसे भरतपुर के राजा महाराज जवाहर सिंह दिल्ली से उखाड़ कर ले आए। उसे इस किले में लगवाया। किले के बारे में रोचक बात यह भी है कि इसमें कहीं भी लोहे का एक अंश नहीं लगा। इस दरवाजे को चितौड़ के राजपूतों ने वापिस प्राप्त करना चाहा और महाराजा जवाहर सिंह को सन्देश भेजा कि 'हम अपनी राजकुमारी का विवाह आपसे करवा देंगे आप ये दरवाजा हमें वापिस कर दो' लेकिन महाराजा जवाहर सिंह ने उनके रिश्ते को ठुकराकर जवाब दिया कि 'जिस तरह हम इसे जीत कर लाए है उसी तरह आप भी हमसे ये छीन कर ले जा सकते है लेकिन राजपुतो में जाटों से दुश्मनी मोल लेने की ताक़त पैदा नहीं हुई और उन्होंने इस दरवाजे को भूलना ही बेहतर समझा । किले के एक कोने पर जवाहर बुर्ज है, जिसे जाट महाराज द्वारा दिल्ली पर किए गए हमले और उसकी विजय के स्मारक स्वरूप सन 1765 में बनाया गया था। दूसरे कोने पर फतह बुर्ज है इस 1805 में अंग्रेजी के सेना को परास्त करने की याद में बनाया गया।

●कर्मचारी के वेतन से धर्म के खाते में जमा होता था पैसा-
रियासत के हर कर्मचारी के वेतन से एक पैसा हर महीने धर्म के खाते में जमा होता था। इस धर्म के भी दो खाते थे, हिन्दू कर्मचारियों का पैसा हिन्दू धर्म के खाते में जमा होता था और मुस्लिम कर्मचारियों का पैसा इस्लाम धर्म के खाते में इकटा किया जाता था। कर्मचारियों के मासिक कटौती से इन खातों में जो भारी रकम जमा हो गई, उसका उपयोग धार्मिक प्रतिष्ठानों के उपयोग में किया गया।बनाए गए मंदिर और मस्जिद हिन्दुओं के धर्म खाते से लक्ष्मण मंदिर और गंगा मंदिर बनाए गए, जबकि मुसलमानों के धर्म खाते से शहर की बीचों बीच बहुत बड़ी मस्जिद का निर्माण किया गया।

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