Posts

Showing posts from April, 2017

21 सिख जाट vs 12000 अफगानी सैनिक, सन 1897(सारागढ़ी का युद्ध)

आपने ग्रीक सपार्टा और परसियन की लड़ाई के बारे मेँ सुना होगा। इनके ऊपर हॉलिवुड में 300 नामक फिल्म भी बनी है। भारतीय युद्ध इतहास में चार महान (खास तौर से) लड़ाई भारत माँ के बहादुर बेटो मातृभूमि की रक्षा में लड़ी हैं! लेकिन अगर आप सारागढ़ी के बारे मेँ पढोगे तो पता चलेगा की दुनिया की महानतम लड़ाई  भारतीय सेना की 36 सिख रेजिमेंट के 21 जबाज़ों ने 12 हज़ार अफगानी पश्तून लड़ाकों से लड़ी थी! बात 1897 की है। नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया। वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे। इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिँह ने बनवाया था। इन किलोँ के पास सारागढी मेँ एक सुरक्षा चौकी थी। जंहा पर 36 वीँ सिख रेजिमेँट के 21 जवान तैनात थे। ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे। 36 वीँ सिख रेजिमेँट मेँ केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे। ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 20 जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि 12 हजार अफगानोँ से जिँदा बचना नामुमकिन है। फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया। और 12 सितम्बर 1897 को सिखलैँड की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो

जय यौद्धेय

झूठ नहीं थे जाट लुटेरे जो तारीख के पाठाँ में लूटण खातर ताकत चाहिए जो थी बस जाटाँ में„ सोमनाथ के मंदिर का सब धरया ढका उघाड लेग्या मोहम्मद गजनी लूट मचाकै जब सारा सौदा पाड लेग्या हीने पन्ने कणी मणी वो चंदन के यारो किवाड लेग्या सब समान लाद कै चाल्या जब सत्राह सौ ऊंट लिए कोये भी ना बोला स्यामी, सबके गोड्डे टूट लिए रस्ते में सिंध के जाटाँ नै पर सारे वो धन लूट लिए मोहम्मद गजनी आया था बस एक जाटाँ की आटाँ में लूटण खातिर ताकत चाहिए जो थी बस जाटाँ में व्रज का योद्वा जाट गोकला, औरंगजेब नै मार दिया सीकरी का वो महल फेर इन जाटाँ नै उजाड दिया ताजमहल में लूट मचाई और सारा गुस्सा तार दिया राजाराम जाट नै लडकै जब दिल्ली की गद्वी हिला दई कब्र खोदकै अकबर की हाड्डी बना चिता फेर जला दई एक चूडामन ने मुगलाँ की लई तार खाल फेर साटयाँ तै लूटण खातिर चाहिए ताकत जो थी रै बस जाटाँ में भरतपुर आले सूरजमल को मुगलाँ नै धोखे तैं मारा उसका बेटा होया जवाहरसिंह जो लालकिले पै जा ललकारा लालकिला भी जीता और लिया लूट माल भी सारा धोखा पट्टी सीखी नहीं बस जंग में पछाड ल्याए मुगलाँ का सिंहासन

1191 में हरियाणे के वीर जाट यौद्धा जाटवान सिंह मलिक की कुछ यादे। जय जाट

1191 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच युद्ध हुआ।इस युद्ध में जाटो ने पृथ्वीराज जी का पूरा साथ दिया।गौरी हार गया पर दोबारा उसने 1192 में हमला कर दिया जिसमें जयचंद राठौड़ ने गौरी का साथ दिया और पृथ्वीराज जी हार गए।और गौरी ने फिर जयचंद को भी मार दिया। इसके बाद गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक(1206-1210)को दिल्ली का राजा बना दिया। ये वही कुतुबुद्दीन है जिसने 700 मंदिर तोड़कर मस्जिदे बनाई,जिसने 1लाख 33000 लोगो का धर्म के नाम पर कत्ल किया,जिसने 80000 जीवो की हत्या की। जाटो को ये अत्याचारी अधर्मी राजा सहन नही हुआ और उन्होंने हिन्दू वीर यौद्धा जाटवान मालिक के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। क्योंकि ये पृथ्वीराज के समय अपने देश के स्वयं शासक थे और पृथ्वीराज को नाममात्र का राजा मानते थे। जाटों ने एकत्र होकर मुसलमानों के सेनापति को हांसी में घेर लिया। वे उसे भगाकर अपने स्वतन्त्र राज्य की राजधानी हांसी को बनाना चाहते थे। इस खबर को सुन कर कुतुबुद्दीन सेना लेकर रातों-रात सफर करके अपने सेनापति की सहायता के लिए हांसी पहुंच गया। जाटों की सेना के अध्यक्ष जाटवान ने शत्रु के दोनों दलों को ललकारा. कि दो

जाटों की धर्मशालाएं, भवन एवं मंदिर

जाट धर्मशालाएं→ . 1. जाट धर्मशाला कोलायत (बीकानेर) राज. 2. जाट धर्मशाला पुष्कर (अजमेर) राज. 3. जाट धर्मशाला खिडग़ी (टारेंक) राज. 4. जाट धर्मशाला भरतपुर राज. 5. जाट धर्मशाला डिग्गी (टोंक) राज. 6. जाट धर्मशाला बीकानेर, राज. 7. जाट धर्मशाला पल्लु (हनुमानगढ़), राज. 8. जाट धर्मशाला श्री गंगानगर, राज. 9. श्री बलदेव राम मिर्धा धर्मशाला (नागौर), राज. 10. वीर तेजाजी धर्मशाला खरनाल (नागौर), राज. 11. श्रीवीर तेजा जाट विश्राम गृहफलौंदी (जोधपुर), राज. 12. श्रीवीर तेजा जाट विश्राम गृहनोखा (बीकानेर), राज. 13. जाट समाज धर्मशाला यात्री कुण्डिया घाट (चित्तौडग़ढ़), राज. 14. श्री सन्नी महाराज जाट धर्मशाला कयासन (चित्तौडग़ढ़), राज. 15. जातला माता धर्मशाला पांडोली (चित्तौडग़ढ़), राज. 16. महाराजा जाट धर्मशाला गगरार (चित्तौडग़ढ़), राज. 17. मरमी माता जी जाट धर्मशाला (चित्तौडग़ढ़), राज. 18. वीगोद त्रिवेणी जाट धर्मशाला (चित्तौडग़ढ़), राज. 19. जगदीशपुर जाट धर्मशाला, राजपुर (भीलवाड़ा), राज. 20. हरवी महादेव जाट धर्मशाला (भीलवाड़ा), राज. 21. जाट धर्मशाला अपर रोड, नाई सोता, हरिद्वार 22. जमुना

जाट बटालियन

3 नम्बर जाट बटालियन का डोगराई पर अधिकार - डोगराई गांव में पाकिस्तान के लगभग एक ब्रिगेड का जमाव (defence) था। उन्होंने चारों ओर कांटेदार तार एवं बारूदी सुरंगें लगा रखी थीं और 18 मशीनगनें (M.M.G.), 6 पेटन टैंक एवं भारी तोपें लगाईं थीं। 3 जाट पलटन ने 21-22 September 1965 ई० को डोगराई पर रात के समय अपना युद्धघोष जाट बलवान जय भगवान् बोलकर धावा बोल दिया। गोलियों की वर्षा व तोपों के गोलों की परवाह न करते हुए शत्रु के मोर्चों पर टूट पड़े। हाथों हाथ संगीनों की लड़ाई में ऐसे पैंतरे दिखाए कि दुश्मन का दिल दहल गया। पाकिस्तानी सेना जाटों से इतनी भयभीत हुई कि मोर्चे छोड़कर भाग गई या शस्त्र डालकर बहुत से कैदी हो गये और काफी मारे गये। सब सामग्री, 3 जाट पलटन के हाथ आई। इस पलटन ने भारतीय तिरंगा झण्डा इच्छोगिल नहर पर पहरा दिया। एक पलटन द्वारा इतना शक्तिशाली शत्रु का मोर्चा जीतने की ऐसी मिसाल संसार में कोई भी न मिलेगी। डोगराई की विजय पर प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री जी, रक्षामंत्री श्री यशवन्तराव चव्हाण, चीफ आफ आर्मी स्टाफ जनरल जे० एन० चौधरी, ब्रिगेडियर रणसिंह अहलावत , ले० जनरल हरबख्शसिंह आदि ने स्व

माता भाग कौर(माई भागो)-

एक महान योद्धा औरत जिन्हे हिंदुस्तान की धरती पर सबसे बहादुर औरत कहा गया है जिन्होंने मुठी भर जाट सिखों का नेतृत्व करके कई बार मुग़लो+राजपूतो की बड़ी बड़ी सेनाओ को हराया-आपका जनम 1671 मे गाँव झबल कलां अमृतसर पंजाब के मझ क्षेत्र जो जाटो की बहादुरी के लिए विख्यात है के चौधरी लंगाह सिंह ढिल्लों(ढिल्लों 84 खाप के प्रधान) जागीरदार के छोटे भाई चौधरी पिरो सिंह की पौत्री के रूप में हुआ,आप बच्पन से ही धार्मिक स्वाभाव की थी,ये पांचवे गुरु श्री अर्जन देव जी महाराज का दौर था और पंजाब खासतौर पर मझ क्षेत्र के जाट बड़ी तेजी के साथ हिन्दू धर्म छोड़कर सिख धर्म अपना रहे थे ,आपका विवाह पट्टी के जागीरदार चौधरी निधान सिंह वररैछ(warriach) के साथ शाही अंदाज़ मे हुआ पर आप शाही ठाठ बाठ छोड़कर देश को मुगलो से आज़ाद कराने में लग गयी,आप 1705 में मुगलो और राजपूतो की शाही सेना को सिर्फ 40 जाट सिखो की मदद से हराकर मशहूर हुई-1705 मे कई लाख राजपूत और गुज्जरों को साथ लेकर मुग़लो ने श्री आनंद पुर साहिब के पवित्र शहर को घेर लिया,राजपूतो की गद्दारी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की पूरे हिंदुस्तान की सभी राजपूत रि

जाट रेजीमेंट के बारे मे रोचक तथ्य | Jat Regiment Interesting Facts

स्थापना वर्ष:1795 आदर्श वाक्य: “संगठन व वीरता” युद्धघोष: “जाट बलवान जय भगवान” मुख्यालय: बरेली, उत्तरप्रदेश आकार: 23 बटालियन जाट रेजिमेंट भारतीय सेना की एक इंफेंट्री रेजिमेंट है और भारत में सबसे पुरानी और सबसे अधिक पदक प्राप्त करने वाली रेजीमेंट में से एक है। अपने 200 से अधिक वर्षों के जीवन में, रेजिमेंट ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध सहित भारत और विदेशों में अनेक युद्धों में भाग लिया है। सन 1839 से 1947 के बीच यह रेजिमेंट 9 वीरता, 2 विकटोरिया और 2 जॉर्ज पुरस्कारों के साथ 41 युद्ध सम्मान प्राप्त कर चुकी है । जाट रेजिमेंट के पास 2 अशोक चक्र, 35 शौर्य चक्र, 10 महावीर चक्र, 2 विक्टोरिया क्रॉस, 2 जॉर्ज सम्मान, 8 कीर्ति चक्र, 39 वीर चक्र, और 170 सेना पदक भी शामिल हैं । ये काफी पुराने आंकड़े है इसलिए नए आंकड़ो के अनुसार जाट रेजिमेंट के पास इनसे भी ज्यादा पदक है । इस रेजिमेंट में मुख्यतः पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के हिन्दू जाटों की भर्ती की जाती है । जाट रेजिमेंट में लगभग 96% जाट सैनिक है | सिर्फ एक बटालियन में अजगर यानी अहीर , जाट, गुजर और राजपूत हैं । जाट रे

राजा ईश्वरीसिंह को सहायता – बागडू (बागरू) का युद्ध (अगस्त, 1748 ई०)

21 सितम्बर, 1743 ई० को सवाई जयसिंह की मृत्यु के साथ ही उसके दोनों पुत्रों ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के बीच उत्तराधिकार का युद्ध शुरु हो गया। माधोसिंह ने अपने मामा उदयपुर के महाराणा जगतसिंह की सैन्य सहायता के बल पर ईश्वरीसिंह के दावे को चुनौति दी। यह गृह-युद्ध कई वर्षों तक चलता रहा, जिसका निर्णय 20 अगस्त, 1748 को बागडू के युद्ध में हुआ। इस युद्ध में माधोसिंह की ओर मल्हारराव होल्कर, गंगाधर तांतिया, मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह, जोधपुर नरेश, कोटा तथा बूंदी के राजा थे। इन सप्त महारथियों ने माधवसिंह को समर्थन देकर ईश्वरीसिंह को पदच्युत करना चाहा। इस पर ईश्वरीसिंह अकेला पड़ गया, तब उसने ब्रजराज बदनसिंह को पत्र लिखकर तत्काल सहायता की अपील की। राजा बदनसिंह के आदेश पर कुंवर सूरजमल 10,000 चुने हुए घुड़सवार, 2,000 पैदल, 2,000 बर्छेबाज तथा सैंकड़ों रथ और हाथी लेकर कुम्हेर से ईश्वरीसिंह की सहायता के लिए चल पड़ा और जयपुर पहुंच गया। मोती डूंगरी में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें मराठों ने भारी शक्ति लगाई किन्तु सूरजमल की जाट सेना के सामने गंगाधर तांतिया और होल्कर की सेनाओं को हार स्वीकार करनी पड़ी। फिर उन्होंने