गुरू तेगबहादुर


इस बात की चेतना कम ही लोगों को होगी कि वीरवर #गोकुलसिंह का बलिदान, गुरू तेगबहादुर से 6 वर्ष पूर्व हुआ था। दिसम्बर 1675 में गुरू तेगबहादुर को शहीद किया गया था - दिल्ली की मुग़ल कोतवाली के चबूतरे पर जहाँ आज गुरुद्वारा शीशगंज शान से मस्तक उठाये खड़ा है। गुरू के द्वारा शीश देने के कारण ही वह गुरुद्वारा शीशगंज कहलाता है। दूसरी ओर, जब हम उस महापुरुष की ओर दृष्टि डालते हैं जो गुरू तेगबहादुर से 6 वर्ष पूर्व शहीद हुआ था और उन्ही मूल्यों की रक्षार्थ शहीद हुआ था और जिसको दिल्ली की कोतवाली पर नहीं, आगरे की कोतवाली के लंबे-चौड़े चबूतरे पर, हजारों लोगों की हाहाकार करती भीड़ के सामने, लोहे की जंजीरों में जकड़कर लाया गया था और जिसको-जनता का मनोबल तोड़ने के इरादे से बड़ी पैशाचिकता के साथ, एक-एक जोड़ कुल्हाड़ियों से काटकर मार डाला गया था, तो हमें कुछ नजर नहीं आता। गोकुलसिंह सिर्फ़ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे न उनका राज्य ही किसी ने छीना लिया था, न कोई पेंशन बंद करदी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुग़ल-सत्ता, दीनतापुर्वक, संधी करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी। शर्म आती है कि हम ऐसे अप्रतिम वीर को कागज के ऊपर भी सम्मान नहीं दे सके। कितना अहसान फ़रामोश कितना कृतघ्न्न है हमारा हिंदू समाज ! शाही इतिहासकारों ने उनका उल्लेख तक नही किया। गुरू तेगबहादुर की गिरफ्तारी और शहादत का उल्लेख किसी भी समकालीन फारसी इतिहासग्रंथ में नहीं है। मेवाड़ के राणा प्रताप से लड़ने अकबर स्वयं नहीं गया था परन्तु ब्रज के उन जाट योद्धाओं से लड़ने उसे स्वयं जाना पड़ा था। फ़िर भी उनको पूर्णतया दबाया नहीं जा सका |

#जमीनं_और_जनानी खात्तर मरणीये तो hit करदिये पर उनका के जो समाज खात्तर कुर्बान होगे

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