21 सिख जाट vs 12000 अफगानी सैनिक, सन 1897(सारागढ़ी का युद्ध)
आपने ग्रीक सपार्टा और परसियन की लड़ाई के बारे मेँ सुना होगा। इनके ऊपर हॉलिवुड में 300 नामक फिल्म भी बनी है। भारतीय युद्ध इतहास में चार महान (खास तौर से) लड़ाई भारत माँ के बहादुर बेटो मातृभूमि की रक्षा में लड़ी हैं! लेकिन अगर आप सारागढ़ी के बारे मेँ पढोगे तो पता चलेगा की दुनिया की महानतम लड़ाई
भारतीय सेना की 36 सिख रेजिमेंट के 21 जबाज़ों ने 12 हज़ार अफगानी पश्तून लड़ाकों से लड़ी थी!
बात 1897 की है। नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया। वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे। इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिँह ने बनवाया था।
इन किलोँ के पास सारागढी मेँ एक सुरक्षा चौकी थी। जंहा पर 36 वीँ सिख रेजिमेँट के 21 जवान तैनात थे। ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे। 36 वीँ सिख रेजिमेँट मेँ केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे।
ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 20 जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि 12 हजार अफगानोँ से जिँदा बचना नामुमकिन है। फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया। और 12 सितम्बर 1897 को सिखलैँड की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो दुनिया की पांच महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल हो गयी।
एक तरफ 12 हजार अफगान थे तो दूसरी तरफ 21 सिख।। यंहा बड़ी भीषण लड़ाई हुयी और 600-1400 अफगान मारे गये। और अफगानोँ की भारी तबाही हुयी। आखिरी सिख सिंगल से था अंत में जब सब खेत रहे तो वो भी अपना अंतिम सन्देश किले तक पहुचाकर हाथ में बन्दुक ले मातृभूमि पर बलिदान होने के लिए मैदान में कूद पड़ा और अफ़ग़ान लड़कों के टुकड़े करते हुए युद्ध भूमि में शहीद हुआ। सिख जवान आखिरी सांस तक लड़े और इन किलोँ को बचा लिया। अफगानोँ की हार हुयी।
जब इन 21 सिखों की बहादुरी की दास्तां ब्रिटेन तक पहुची तो ससंद भवन में सबने सांस रोक कर सुनी और समूची संसंद ने खड़े होकर इन बहादुर सिपाहियों को सलाम किया । भारतीय युद्ध इतिहास में पहली बार हुआ जब सभी लड़कों को एक साथ ब्रिटेन का सबसे उच्च बहादुरी का पुरूस्कार देकर नवाज़ा गया, इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट जो आज के परमवीर चक्र के बराबर है। भारत के युद्ध इतिहास में आजतक सैनिकों द्वारा लिया गया सबसे विचित्र और बहादुरी भरा अंतिम फैसला है।
बात 1897 की है। नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया। वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे। इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिँह ने बनवाया था।
इन किलोँ के पास सारागढी मेँ एक सुरक्षा चौकी थी। जंहा पर 36 वीँ सिख रेजिमेँट के 21 जवान तैनात थे। ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे। 36 वीँ सिख रेजिमेँट मेँ केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे।
ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 20 जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि 12 हजार अफगानोँ से जिँदा बचना नामुमकिन है। फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया। और 12 सितम्बर 1897 को सिखलैँड की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो दुनिया की पांच महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल हो गयी।
एक तरफ 12 हजार अफगान थे तो दूसरी तरफ 21 सिख।। यंहा बड़ी भीषण लड़ाई हुयी और 600-1400 अफगान मारे गये। और अफगानोँ की भारी तबाही हुयी। आखिरी सिख सिंगल से था अंत में जब सब खेत रहे तो वो भी अपना अंतिम सन्देश किले तक पहुचाकर हाथ में बन्दुक ले मातृभूमि पर बलिदान होने के लिए मैदान में कूद पड़ा और अफ़ग़ान लड़कों के टुकड़े करते हुए युद्ध भूमि में शहीद हुआ। सिख जवान आखिरी सांस तक लड़े और इन किलोँ को बचा लिया। अफगानोँ की हार हुयी।
जब इन 21 सिखों की बहादुरी की दास्तां ब्रिटेन तक पहुची तो ससंद भवन में सबने सांस रोक कर सुनी और समूची संसंद ने खड़े होकर इन बहादुर सिपाहियों को सलाम किया । भारतीय युद्ध इतिहास में पहली बार हुआ जब सभी लड़कों को एक साथ ब्रिटेन का सबसे उच्च बहादुरी का पुरूस्कार देकर नवाज़ा गया, इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट जो आज के परमवीर चक्र के बराबर है। भारत के युद्ध इतिहास में आजतक सैनिकों द्वारा लिया गया सबसे विचित्र और बहादुरी भरा अंतिम फैसला है।
UNESCO ने इस लड़ाई को अपनी 8 महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल किया। इस लड़ाई के आगे स्पार्टन्स की बहादुरी फीकी पड़ जाती है।
इस बात पर बहुत तकलीफ होती है कि जो बात जो शौर्य गाथा हर भारतीय को पता होनी चाहिए, उसके बारे मेँ कम लोग ही जानते है। ये लड़ाई यूरोप के स्कूलोँ मेँ पढाई जाती है पर हमारे यंहा जानते तक नहीँ। ख़ुशी इस बात की है कि भारतीय सिनेमा के प्रहरियों ने कोशिश की है इस हैरतअंगेज कहानी को भारत और दुनिया के सामने लाने की।
इस बात पर बहुत तकलीफ होती है कि जो बात जो शौर्य गाथा हर भारतीय को पता होनी चाहिए, उसके बारे मेँ कम लोग ही जानते है। ये लड़ाई यूरोप के स्कूलोँ मेँ पढाई जाती है पर हमारे यंहा जानते तक नहीँ। ख़ुशी इस बात की है कि भारतीय सिनेमा के प्रहरियों ने कोशिश की है इस हैरतअंगेज कहानी को भारत और दुनिया के सामने लाने की।
श्री राजकुमार संतोषी और भाई रणदीप हुड्डा को शत शत धन्यवाद।
सारागढ़ी में शहीद हुए भारतीय जवानों को शतः नमन
जय जवान जय किसान
जय जवान जय किसान
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