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Showing posts from August, 2016

जाट वीर महाराजा रणजीत सिंह

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जाट वीर महाराजा रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में सिख जाट परिवार हुआ था। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी जाती रही। महज 12 वर्ष के थे जब पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर आ गया। 12 अप्रैल 1801 को रणजीत ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गै र मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लियाबेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक

....%जाट चालीसा%.....

जाट सेवा सच्ची सेवा, जो करे वो खाये मेवा.. जो जाटो के पाँव दबावे, बस वैकुँठ परम पद पावे.. जो जाटो की करे गुलामी, ना आये कोई परेशानी.. जो जाटो का भरे हुक्का, उसकी किस्मत जग से न्यारी.. भुत पिशाच निकट नहि आवे,जो जाटो के कीर्तन गावे.. हाथ जोड कर कीजिये जाटो का ध्यान, घर मे खुशहाली रहेगी हो जायेगा कल्याण.. जाटो का नमन कर माला लेकर हाथ.. मुख से जाट वन्दना करो,, "बोलो मेरे साथ" . जय जाट देवता बलसारी कल्याणकारी, तेरी माया किसी ने ना जानी.. तुमसे तो है सब 35वाले हारे, डर से थर-थर काँपे सारे.. नहि तुमहे कोई जान पाया, जन तो क्या खुद ईश्वर नी तुम्हे जान पाया.. अपरम्पार जाटो के ठाठ, कोई इनको पार ना पाया.. लगो देखने मे तुम भोले-भाले, हो लेकिन तुम बहुत ही खुखार प्राणी.. हे हमारे जाट देवता तुम, हो हमारे भाग्याविधाता.. हाथो मे रहते हथियार तुम्हारे, जब चाहे जिसको मारे.. ऐसी निकले बोली तुम्हारी, जैसे निकली हो बन्दुक से गोली.. हम तुमसे डरते है ऐसे,जैसे शेर से डरते जगंल के जानवर सारे.. ऐसा है आतंक तुम्हारा,नाम से ही काँपे जग सारा.. करे जो जन जाटो की सेवा, मिलती उसको सच्ची मे

आरती जाट

देवताजय जग जाट हरे, स्वामी जय जग जाट हरे।दो दो गज की मूंछे, कान्धै लट्ठ धरै।। जय।।पंचों का सरपंच कहाये, हाथ रहे चलता। स्वामी।देता भूत उतार तभी, जो तीन पांच करता।। जय।।अन्न विधाता कहलाता तू, हे हलधर नामी। स्वामी।तुम बिन बात बने ना मेरी, लट्ठमार स्वामी।। जय।।चिलम-तम्बाकू और हुक्के की, धूप लगे तेरी। स्वामी।।मठा-दही के साथ कलेवा, दो गुड़ की पेड़ी।। जय।।तुम हो निशाचरों के मारक, निर्बल के साथी। स्वामी।।सोया भूत जागता जाये, जै पड़ जावे लाठी।। जय।।सूरजमल सी चाल चले तू, नाहर सागरजे। स्वामी।भगतसिंह बनकर तू इंकलाब करदे।। जय।।दगाबाज और जालसाज के, भर देता भूसा। स्वामी।।चोर, उचक्का, झूठा भागे, सात - सात कोसा।। जय।।रोड़ा, राह बने ना कोई, जो खेंच कान देता। स्वामी।।जब-उठै तलब दूध की, पी एक भैंसलेता।। जय।।जो ये पढ़ै आरती जाट की, तो आरक्षण मिलज्या। स्वामी।।साथ सभी के कुणडु जाट का मन भी खिलज्या।।समर्पणतन मन धन से जिनका जीवन, जाति के हित अर्पित है।‘जाट चालीसा’ सही जाट का, जाटो! तुम्हें समर्पित है।।

जाट

जाट मिलेंगे कर्मा जैसी नारी मे जाट मिलेंगे तेजाजी कि बलिदानी मे जाट मिलेंगे सूरजमल कि कहानी मे जाट मिलेंगे धन्ना-भगत कि वाणी मे जाट मिलेंगे धरती और पाताल मे जाट मिलेंगे वीरो कि गाथा मे जाट मिलेंगे मझनो वाली बाहो मे जाट मिलेंगे नीम-पीपल कि छावो मे जाट मिलेंगे खेतो और खलिहानो मे जाट मिलेंगे कबड्डी के मैदानों मे जाट मिलेंगे शहीदो कि अंगड़ाई में जाट मिलेंगे कारगिल जैसी लडाई मे जीते जी ये, जाट मिलेंगे गंगा मे मर ने पर ये, जाट मिलेंगे तिरंगा मे इन्ही अरमानो से जली चिताएँ जाटो की ऐसा ना हो आग लेगा दे, ये चिंगारी जाटो की ||

जाट महाराजाओ के राज

जाट महाराजाओ के राज कार्यकाल की अवधि.जिसमे गोकुला रजा नहीं थे लेकिन सबसे मुगलों से सबसे पहले इन्होने हीलोहा लिया और अपने जीवन  का बलिदान दिया. फिर रजा राम जी  ने कार्यभार संभाला. चुरामन जी ने मुगुलो को छापामारी रननिति से मुगुलो कोबहौत धुल चटाई.. गोकुला ( - 1670 ], राजा राम (1670 - 1688) , Churaman (1695 - 1721) , बदन सिंह (1722 - 1756) , महाराजा सूरजमल (1756 - 1763) , महाराजा जवाहर सिंह (1763 - 1768) , महाराजा रतन सिंह (1768 - 1769) , महाराजा Kehri सिंह (1769 - 1771) , महाराजा नवल सिंह (1771 - 1776) , महाराजा रणजीत सिंह (1776 - 1805) , महाराजा रणधीर सिंह (1805 - 1823) , महाराजा बलदेव सिंह (1823 - 1825) , महाराजा बलवंत सिंह (1825 - 1853) , महाराजा जसवंत सिंह (1853 - 1893) , महाराजा राम सिंह (1893 - 1900) ( निर्वासित ), महारानी Girraj कौर (1900-1918) ( रीजेंट ), महाराजा किशन सिंह (1900 - 1929) , महाराजा बृजेन्द्र सिंह (1929-1947

जाट तो जाट होता है च कही का भी हो.

खेती करन आला भी जाट है.... सरहद पर शहीद होन आला भी जाट है.... 6 ball पर 6 sixes मारन आला भी जाट है.... मुकेबाज भी जाट है.... Multan का sultan भी जाट है.... कुशती लडन आला भी जाट है.... WWE में लडन आला भी जाट है.... kabaddi खेलन आला भी जाट है.... सेना का pramukh भी जाट है.... मिलखा सिंह का Record तोडन आला भी जाट है.... सबते जादा Arjun Award पान आला भी जाट है.... 23 साल की Age में देश की आजादी की खातिर फांसी पर चढन आला भी जाट है... इतने बढिया गाने देन आला भी जाट है.... कुल मिलाकर इस देश की Life Line ही जाट है..... जाट तो जाट होता है च कही का भी हो.. .किसी की Cast को नीचा नहीं कहा बस अपनी Cast को Respect दे

रिंकू हुड्डा पिता ने कर्जा लेकर भेजा स्विटजरलैंड, बेटे ने गोल्ड जीत पैरालंपिक में बनाई जगह

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रियो ओलिंपिक में ब्रॉज मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करने वाली रेसलर साक्षी मलिक के बाद अब रोहतक के तीन खिलाड़ी पैरालिंपिक में अपने दावेदारी पेश करेंगे। रियो में 7 से 18 सितंबर तक होने वाले पैरालिंपिक के आर्चरी मुकाबले में पूजा हुनर दिखाएगी। दिव्यांग रिंकू हुड्डा एक हाथ से ही जेवलिन थ्रो में कमाल दिखाएंगे। 31 अगस्त को ब्राजील के लिए रवाना होंगे। धामड़ गांव का दिव्यांग रिंकू हुड्डा रियो में होने वाले पैरालंपिक के महाकुंभ में जेवलिन थ्रो में भाग लेगा। किसान रोहताश हुड्डा का बेटा रिंकू (17) हायर सेकेंडरी की पढ़ाई कर रहा है। पढ़ाई के साथ खेल में अव्वल रिंकू ने बताया कि वर्ष 2003 में पंखे की चपेट में आकर बायां हाथ गंवा बैठा। हाई जंप, डिस्कस थ्रो व जेवलीन थ्रो में दिलचस्पी बनी तो शारीरिक अक्षमता को पीछे छोड़ दिया। वर्ष 2013 से खेल का अभ्यास शुरू किया। वर्ष 2015 में गाजियाबाद में हुई नेशनल जेवलीन थ्रो प्रतियोगिता में सिल्वर, वर्ष 2016 में पंचकूला में हुई नेशनल जेवलीन थ्रो में ब्रांज मेडल व 23 से 30 जून 2016 तक स्विटजरलैंड में हुई इंटरनेशनल टूर्नामेंट में 44 मीटर वर्ग में बेहतर प्रदर्शन कर गोल्ड

जब जाटों ने अंग्रेजों का सूर्य उदय होने से रोक दिया

एक कहावत है कि ‘अंग्रेजों के राज में उनका सूर्य कभी अस्त नहीं होता था’ यह सच है कि इनके अधीन जमीन पर हमेशा कहीं ना कहीं दिन रहता था। भारत के इतिहास में अंग्रेजों के विरुद्ध केवल प्लासी की लड़ाई का वर्णन किया जाता है जबकि यह लड़ाई पूरी कभी लड़ी ही नहीं गई, बीच में ही लेन-देन शुरू हो गया था। सन् 1857 के गदर का इतिहास तो पूरा ही मंगल पाण्डे, नाना साहिब, टीपू सुलतान, तात्या टोपे तथा रानी लक्ष्मीबाई के इर्द-गिर्द घुमाकर छोड़ दिया गया है, लेकिन जब जाटों का नाम आया और उनकी बहादुरी की बात आई तो इन साम्यवादी और ब्राह्मणवादी लेखकों की कलम की स्याही ही सूख गई। इससे पहले सन् 1805 में भरतपुर के महाराजा रणजीतसिंह (पुत्र महाराजा सूरजमल) की चार महीने तक अंग्रेजों के साथ जो लड़ाई चली वह अपने आप में जाटों की बहादुरी की मिशाल और भारतीय इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय है। भारत में अंग्रेजों का भरतपुर के जाट राजा के साथ समानता के आधार पर सन्धि करना एक ऐतिहासिक गौरवशाली दस्तावेज है जिसे  'Permanent Friendship Treaty on Equality Basis' नाम दिया गया। इस प्रकार की सन्धि अंग्रेजों ने भारतवर्ष में किसी भी रा

वीर आर्य जाट जाति

आज की अपेक्षा देहली प्रान्त बड़ा था । उसी समय की विस्तृत(wide) सीमा के अनुसार हम देहली, हरयाणा के कुछ प्रसिद्ध और ऐतिहासिक(historical) जाट–वंशों(Jat-clans) का यहां परिचय(introduction) देते हैं । इसके साथ ही यह बता दें की हम यहाँ जातिवाद(Racism) नहीं फैलाना चाहते बल्कि हमने हमेशा कहा है कि अजगर नामक  अहीर -जाट-गुर्जर-राजपूत  आदि तो महाभारत(mahabharat) से ही पक्के आर्य(arya) रहें है जिनहोने आज गुलामी की निशानियाँ अपना ली है। जन्म से नहीं कर्मों से क्षत्रीय होता है।  गठवाला जाट  इस प्रान्त में और यू.पी. में भी पाए जाते हैं । इनकी  आहोलानियां  भी एक शाखा है । सोनीपत बांगर और दो-आब तथा जमुना के सामने इनकी बस्तियां हैं । मलिक(malik) या मालिक इनकी उपाधि है । गठवाला जाटों के संबंध में डब्लू. कूक ने लिखा है कि इनका मुख्य स्थान गोहाना में धेर का ओलाना था । पड़ोसी राजपूतों के साथ इनके निरंतर युद्ध(war) होते रहे । उनमें यह पूर्ण सफल रहे । इसी कारण अन्य जाटों ने इनको प्रधान मान लिया । साथ ही इनको मालिक कि उपाधि दे दी गई । एक बार मन्दहारों ने उन्हें धोखा देकर बारूद से उड़ा दिया । बचे हुए लोग हांसी के

“जाट जितना कटेगा,उतना ही बढ़ेगा।”

इतिहास साक्षी है कि सन् 1749 में मोती डूंगरी की लड़ाई में महाराजा सूरजमल ने एक साथ मराठों, चैहानों, सिसोदियों तथा हाड़ाओं को हराया था।याद रहे इस महान् राजा सूरजमल के पूर्वज बेताज बादशाह चूड़ामन ने जोधपुर के राजा अजीतसिंह की पुत्री इन्द्रा कुमारी पठानों के बादशाह फर्रुखसियर के हरमखाने से आजाद कराके राजा अजीतसिंह को सौंपी थी। जब 25 दिसम्बर 1763 को महाराजा सूरजमल को शाहदरा में मुगलों ने लड़ाई की तजवीज बनाते हुए धोखे से मार दिया जो अपने समय के सम्पूर्ण एशिया में एक महान् शासक माने जाते थे !तो इसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र महाराजा जवाहरसिंह ने सन् 1764 में लाल किले पर आक्रमण किया और 5 फरवरी को लगभग 11 बजे इस किले को फतेह कर लिया। राजा होलकर तथा पुरोहितों की जलन की वजह से दो दिन पश्चात् मुगलों से नजराना लेकर किले से अपनी सेनाएं हटाईं तथा मुगलों की शान कहे जानेवाला काले संगमरमर का मुगलों का सिंहासन तथा लाल किले के किवाड़ यादगार के तौर पर जाट छीन लाये और यह सिंहासन आज डीग केमहलों की शोभा बढ़ा रहा है तथा लाल किले के किवाड़ भतरपुर में अजयगढ़ के किले में लगे हैं। भारतीय इतिहास इस सच्चाई को उ

जाटों का जलवा

1) विनायक कॉलेज, फतेहपुर -बहन अनीता जाटणी शेखिसर NSUI 2) लव कुश महाविधालय दूधू - छगनी चौधरी 3) राजकीय महाविधालय मंगलाना- सुरेश डूडी 4) SJ कॉलेज अजमेर- विकास कमेड़ीया 5) नर्सिंग कॉलेज बीकानेर - रामनिवास सहू 6) M.D. कॉलेज फेफाना- रवि भादू 7) आदर्श महाविधालय जौधपुर - अचलाराम चौधरी 8) MDSU अजमेर- दीनाराम धौलिया जाट 9) राजकीय महाविधालय खींवसर- रामदेव सारण 10) राजकीय महाविधालय मेड़ता- रामनारायण कड़वासरा 11) भगतसिंह कोलेज रायसिंहनगर- विक्रम भादू 12) विवेकानन्द महाविधालय रामसर- मोटाराम जाट 13) महादेव कोलेज बायतू- गजेंद्र सारण 14) लॉ कॉलेज बीकानेर - रामलाल चौधरी 15) गायत्री नर्सिंग कॉलेज उदयपुर- महेन्द्र रणवा 16) लाचू कॉलेज जौधपुर - महादेव चौधरी 17) राजकीय महाविधालय औसियां- बीरबल भाकर 18) जैन पी जी कॉलेज बीकानेर- मदन सियाग 19) राजकीय महाविधालय लूनकरनसर- रामनिवास गाट 20) राजकीय महाविधालय डेगाना- दिनेश चौधरी। चौधरी 21) राजकीय महाविधालय -हरेन्द्र रोज 22) SBD सरदारशहर - राकेश जाखड 23) SK जीवी कॉलेज संगरिया- इकबाल सिंह (जट्ट सिख) 24) राजकीय कन्या महाविधालय बाड़मेर- मूली चौधरी