वीर आर्य जाट जाति

आज की अपेक्षा देहली प्रान्त बड़ा था । उसी समय की विस्तृत(wide) सीमा के अनुसार हम देहली, हरयाणा के कुछ प्रसिद्ध और ऐतिहासिक(historical) जाट–वंशों(Jat-clans) का यहां परिचय(introduction) देते हैं । इसके साथ ही यह बता दें की हम यहाँ जातिवाद(Racism) नहीं फैलाना चाहते बल्कि हमने हमेशा कहा है कि अजगर नामक अहीर-जाट-गुर्जर-राजपूत आदि तो महाभारत(mahabharat) से ही पक्के आर्य(arya) रहें है जिनहोने आज गुलामी की निशानियाँ अपना ली है। जन्म से नहीं कर्मों से क्षत्रीय होता है। गठवाला जाट इस प्रान्त में और यू.पी. में भी पाए जाते हैं । इनकी आहोलानियां भी एक शाखा है । सोनीपत बांगर और दो-आब तथा जमुना के सामने इनकी बस्तियां हैं । मलिक(malik) या मालिक इनकी उपाधि है ।

गठवाला जाटों के संबंध में डब्लू. कूक ने लिखा है कि इनका मुख्य स्थान गोहाना में धेर का ओलाना था । पड़ोसी राजपूतों के साथ इनके निरंतर युद्ध(war) होते रहे । उनमें यह पूर्ण सफल रहे । इसी कारण अन्य जाटों ने इनको प्रधान मान लिया । साथ ही इनको मालिक कि उपाधि दे दी गई । एक बार मन्दहारों ने उन्हें धोखा देकर बारूद से उड़ा दिया । बचे हुए लोग हांसी के पास देपाल चले गए और देपाल को अपनी राजधानी बनाया ।

यहां आपको बता दें कि आज अजगर नाम से प्रसिद्ध अहीर , जाट , गुर्जर और राजपूत ये सभी एक ही थे । इनमें रक्त संबंधी कोई अंतर नहीं है । भारत के सभी विद्वान तथा क्रुर्के , पी. जे. फागन , मिस्टर इब्ट्सन जैसे विदेशी विद्वानों ने भी इनको एक ही माना है । हालांकि ये आज से बहुत पहले समय–समय पर अलग होते गए परंतु आज भी इनमें बहुत सारी समानता दिखाई देती है । साथ ही इन सभी वीर जतियों ने हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ी है चाहे इनके आपस में कितने ही मन – मुटाओ रहे हों ।

दहिया और मालिक ये जाटों के दो बड़े और शक्तिशाली दल कहे जाते है । दहिया(dahiya) जाटों का मुख्य स्थान सोनीपत में भटगांव के निकट है । आरंभ में मेरठ–देहली के पास मवाना में रहते थे । ये पूर्ण शक्तिशाली थे , परंतु गठवालों के बढ़े प्रताप से जलकर एक बार इन्होनें मन्दहार राजपूतों की सहायता की थी । इस संघर्ष में थापानोलिया केजगलान और रोहतक के लतमार जाट दहिया लोगों के और हूड़ा तथा अन्य सभी जाट गठवालों के साथ मिल गए । इस तरह इन दोनों शक्तिशाली वंशों ने अपनी पारस्परिक लड़ाई में शक्ति(power) को नष्ट कर लिया और शक्ति के बल पर जो स्वतन्त्रता(freedom) कायम राखी थी , उसे खो दिया ।

इस्लाम विरोधी प्रसिद्ध आर्य जाट खानदान anti-islam arya jat clan

इनकी एक बड़ी कमजोरी भी रही है कि ये अपनी ही जाति , भाइयों को ज्यादा ताकतवर नहीं होता देख सकते है । इसी कारण महाभारत से लेकर आजतक आर्यावर्त को शत्रुओं से बचाने में अपना सब कुछ लगाने वाले ये संघ इतिहास में अपनी छाप ज्यादा नहीं छोड़ पाए । इसका एक कारण यह भी है कि ये लोग बहुत सीधे होते है । छल–कपट नहीं जानते थे और इतिहास(history) लिखने में कभी भी रूचि(interest) नहीं रखते थे । ये लोग अपनी जगत–प्रसिद्धि नहीं चाहते यह बात भी स्पष्ट होती है ।

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