" हवा में रहेगी ख्याल की बिजली , यह जिस्म मुशके खाक है , रहे या न रहे "

फांसी पर चढ़ने से पहले शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने कहा था
" हवा में रहेगी ख्याल की बिजली ,
यह जिस्म मुशके खाक है , रहे या न रहे "

68 साल हो गए देश आज़ाद हुए पर सरकारी दस्तावेजों में शहीद-ए-आज़म को आज भी शहीद का दर्जा नहीं | चुनाव से पहले बड़े बड़े वायदे किए जाते हैं पर सत्ता में आते ही फ़ाइल ही बंद कर दी जाती हैं | इनको शहीद का दर्जा देते वक़्त सरकार की कलम की स्याही ही सूख जाती हैं ! ऐसे क्या कारण हैं कि कोई भी सरकार हो सरदार भगत सिंह को सम्मान की बात आते ही चुप्पी खींच लेती हैं ?  हमारे भिवानी-महिन्द्र्गढ़ लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के सांसद ने काँग्रेस छोड़ने से पहले अपनी धर्म सेना के बैनर तले भिवानी में भगत सिंह व चंद्र बोस को सम्मान दिलाने के लिए एक जनसभा की थी , उसके तीन बाद नेता जी भाजपा में आ गए और सांसद भी चुने गए | मैं हर बार यहीं सोचता था कि शायद नेता जी इस सत्र में यह मुद्दा उठाएंगे पर मुझे अब तक सांसद महोदय कि इस मुद्दे पर आवाज़ सुनाई नहीं दी ! अगर आवाज़ उठाई भी होगी तो शायद कहीं दब गई होगी तभी कानों में नहीं पड़ी !
इन नेताओं का हलक सूख जाता होगा  , सरकार की स्याही सूख जाती होगी पर हम तो यह मुद्दा ज़ोर शोर से उठा सकते हैं ! लोग 15 अगस्त को लेकर अपनी अपनी वाल पर पोस्ट कर रहे है , तिरंगा लगा रहे है , बधाइयाँ दे रहे | असली बधाई तभी होगी जब हमारे शहीद-ए-आज़म को सम्मान मिलेगा | इन बधाइयों की पोस्ट को छोड़ो अपनी अपनी वाल पर शहीद-ए-आज़म को सम्मान के लिए पोस्ट लिखो ताकि गूंगी बहरी सरकार जाग सके |
इस शेर का बातुनी नहीं असल में 56 इंच का सीना था | तभी तो इससे गोरे बनिए घबरा गए थे , गोरे बनिए तो क्या आज इस शेर को सम्मान देने में काले बनियों की सरकारें भी घबरा रही हैं !

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