जाट वीर महाराजा रणजीत सिंह

जाट वीर महाराजा रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में सिख जाट परिवार हुआ था। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी जाती रही। महज 12 वर्ष के थे जब पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर आ गया।
12 अप्रैल 1801 को रणजीत ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया।
महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गै र मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लियाबेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। सन 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां कायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद 30 मार्च 1849 में पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया और कोहिनूर महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया।काश्मीर के बाद इसने पेशावर पर 1822 में चढ़ाई कर दी, यारमुहम्मद खाँ अफगानियों का नेतृत्व करता हुआ बहुत बहादुरी से लड़ा लेकिन अंत में पराजित हुआ। इस युद्ध में सिक्खों का भी बड़ा नुकसान हुआ। 1838 में पेशावर पर रणजीतसिंह के अधिकार से भयभीत होकर दोस्तमुहम्मद खाँ काबुलनरेश बहुत भयभीत हुआ और रूस तथा ईरान से दोस्ती कर ली। इस बात को ध्यान में रखकर अंग्रेजों ने स्वयं रणजीतसिंह तथा शाहशुजा के साथ एक त्रिगुटसंधि कराई। महाराजा रणजीतसिंह अस्वस्थ हो रहे थे। 1838 में लकवा का आक्रमण हुआ, यद्यपि उपचार किया गया और अंग्रेज डाक्टरों ने भी इलाज किया, लेकिन 27 जून 1839 ई. को उनका प्राणांत हो गया।
हमे गर्व है अपने जाट पूर्वजों पर जिन्होंने पंजाब से लेकर अफगानिस्तान तक राज किया जय हो इन जाटवीर की।
जय जाट, जय जाटलैंड

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