पी वी सिन्धु बेडमिंटन खिलाड़ी (जाट विरासत )
दक्षिण में हैदराबाद के गोलकुण्डा किले को फतह करना औरंगजेब के लिए एक बड़ी चुनौती थी। इसके लिए उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। अन्त में उसने एक तोपखाना खड़ा करने तथा छापामार टुकड़ी बनाने का निर्णय लिया।
लेकिन इसके लिए उसे दिलेर सैनिकों की आवश्यकता थी। जब उसने इसके लिए अपनी नजर दौड़ाई तो उसको दिल्ली तथा इसके आसपास केवल बहादुर जाट ही नजर आये और उसने इसके लिए जाटों से आह्वान किया।
दिल्ली व उसके आसपास से इस उद्देश्य के लिए 700-800 जाटों की अलग से एक सेनाबनाई। इस लड़ाई में जाटों ने चमत्कारिक बहादुरी दिखलाई और गोलकुण्डा किले को फतह कर लिया।
गोलकुण्डा की स्थाई सुरक्षा तथा जीत की खुशी में औरंगजेब ने इन जाटों को हैदराबाद के पास मुफ्त में जमीन देकर उन्हें यहाँ बसाया। समय अपनी गति से चलता रहा,राज-रजवाड़े बदलते रहे और वहीं जमीन घटती रही, लेकिन जाट बढ़ते रहे और वह समय आ गया जब ये जाट छोटे किसान और मजदूर बनकर रह गये।
आज यही जाट लगभग 50 हजार की जनसंख्या में हैदराबाद के रामदेवगुड़ा से नलगुण्डा तक लगभग 65 कि. मी. में फैले अपनी बहादुरी का इतिहास अपने सीने में छिपाये हैं और भारत सरकार व आन्ध्र प्रदेश की बेवफाई पर आंसू बहा रहे हैं।
अभी-अभी की सरकार ने इनको पिछड़े वर्ग में शामिल किया है। इनके गोत्र हैं सिन्धु , गुलिया,माथुर, दहिया ,सहरावत ,राठी , रावत , मान , दलाल , खैनवार,नूनवार,जकोदिया,ब्यारे,हतीनजार व दुर्वासाआदि। जैसे इनका रंग बदलता गया वैसे गोत्र भी, लेकिन जाट ‘Genes’ (रक्त) इनमें आज भी कायम है।
श्रीमती रेणुका चौधरी पूर्व में केन्द्रीय मन्त्री इसी समाज से सम्बन्धित हैं।
इन गोलकुण्डा विजेताओं के इतिहास को भूला दिया गया जबकि मुगलों के हिन्दू सेनापतियों का इतिहास पढ़ाया जा रहा है।
इस समाज में पर्दाप्रथा नहीं है।
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