“जाट जितना कटेगा,उतना ही बढ़ेगा।”
इतिहास साक्षी है कि सन् 1749 में मोती डूंगरी की लड़ाई में महाराजा सूरजमल ने एक साथ मराठों, चैहानों, सिसोदियों तथा हाड़ाओं को हराया था।याद रहे इस महान् राजा सूरजमल के पूर्वज बेताज बादशाह चूड़ामन ने जोधपुर के राजा अजीतसिंह की पुत्री इन्द्रा कुमारी पठानों के बादशाह फर्रुखसियर के हरमखाने से आजाद कराके राजा अजीतसिंह को सौंपी थी।
जब 25 दिसम्बर 1763 को महाराजा सूरजमल को शाहदरा में मुगलों ने लड़ाई की तजवीज बनाते हुए धोखे से मार दिया जो अपने समय के सम्पूर्ण एशिया में एक महान् शासक माने जाते थे !तो इसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र महाराजा जवाहरसिंह ने सन् 1764 में लाल किले पर आक्रमण किया और 5 फरवरी को लगभग 11 बजे इस किले को फतेह कर लिया। राजा होलकर तथा पुरोहितों की जलन की वजह से दो दिन पश्चात् मुगलों से नजराना लेकर किले से अपनी सेनाएं हटाईं तथा मुगलों की शान कहे जानेवाला काले संगमरमर का मुगलों का सिंहासन तथा लाल किले के किवाड़ यादगार के तौर पर जाट छीन लाये और यह सिंहासन आज डीग केमहलों की शोभा बढ़ा रहा है तथा लाल किले के किवाड़ भतरपुर में अजयगढ़ के किले में लगे हैं। भारतीय इतिहास इस सच्चाई को उजागर क्यों नहीं करता कि यही किवाड़ चित्तौड़गढ़ के किले को जीतने पर मुगल वहां से उठाकर लाए और लाल किले में लगवा दिये गए थे। लेकिन स्वाभिमानी जाट सरदार इन्हें लाल किले से उखाड़कर भरतपुर ले गए थे। इससे पहले भी एक बार गुस्साये जाटों ने मुगलों की दिल्ली (बाजारों)को 9 मई से 4 जून 1753 को जी भरकर लूटा जिसे ‘दिल्ली की लूट’ व ‘जाट गर्दी’ मे नाम से जाना गया। इसीलिए एक कहावत प्रचलित हुई “जाट जितना कटेगा,उतना ही बढ़ेगा।”
Comments
Post a Comment